आरा (voice4bihar desk)। जिले के जगदीशपुर में आयोजित यज्ञ में प्रवचन करते हुये जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि श्री शुकदेवजी महाराज ने राजा परीक्षित को मानव कल्याण के लिए सबसे सहज और सरल उपाय परमात्मा के श्रीचरणों में चिन्तन बताया। जिस अवस्था में जिस व्यवस्था में रहें प्रभु का स्मरण, चिन्तन एवं ध्यान निरन्तर करते रहें। शास्त्रों में बताया गया है कि दान, तप और ध्यान आत्मा के उद्धार व कल्याण का प्रमुख साधन हैं। मनुष्य को अपनी मृत्यु को याद करते हुये बचपन, जवानी एवं बुढ़ापा में भगवान का चिन्तन, मनन और उनके गुणों का श्रवण हर पल करते रहना चाहिए।
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शास्त्र में कहा गया है साधक को संकट आने पर, मृत्यु निकट आने पर या अन्त समय आने पर घबराना नहीं चाहिए। भगवान प्रभु नारायण के नाम या ऊं जप करते हुये शेष जीवन को बिताएं एवं स्मरण करें। भगवान के स्वरुप का स्मरण करे। वेद शास्त्र में बताया गया है कि भगवान के श्रेष्ठ स्वरूप में एक चतुर्भुज स्वरूप है। स्वामी जी ने इस गूढ़ रहस्य को बताया कि चतुर्भुज का मतलब चार भुजा वाला स्वरूप जिसमें शंख, चक्र, गदा और पद्म है। ऐसे स्वरूप वाले प्रभु को अपने दिल दिमाग में बैठाकर जप, तप, ध्यान एवं पूजन करना चाहिये। यही मावन जीवन के कल्याण का सबसे सरल और सुगम साधन है।
उन्होंने बताया कि धर्म के आठ खंबे होते हैं। आठ में से चार साझी हैं। उसे अच्छे लोग भी करते हैं और बुरे भी। शेष चार धर्म का जो खंभा है वह केवल अच्छे लोग ही करते हैं। यज्ञ बाबा विश्वामित्र, वशिष्ठ जैसे अच्छे लोग भी करते हैं और यज्ञ पापी रावण, कुम्भकरण जैसे लोग भी करते हैं। अच्छे लोग इसलिए करते हैं कि हमारे पास कुछ बल आ जाए कि उपकार करें। बुरे लोग इसलिए करते हैं कि दुसरे को सताएं। अन्य चार धर्म का जो खंभा है वह केवल अच्छे लोग में ही पाया जाता है। धैर्य, क्षमा, संतोष, अलोभ। साबुन, सर्फ, जल से कपड़े की गंदगी साफ हो जाती है। परंतु और गंदगी साफ नही होती है। जो व्यक्ति धर्म करता है वह धार्मिक है। जो हठ करके धर्म करता है वह धर्माभास है।