माहे रमजान में भी कर्तव्य पथ पर डटी हैं कामकाजी महिलाएं
कर्तव्य निर्वहन के साथ ही इबादत के लिए निकाल रहीं वक्त
रमजान के फजीलत व इंसानी फर्ज के बारे में पेश किया अपना नजरिया
पटना (voice4bihar news)। रमजान का पवित्र महीना चल रहा है, जिसमें हर अकीदतमंद अपनी पूरी आस्था के साथ दुआएं कर रहा है। इनमें काफी संख्या वैसे लोगों की है जो अपने कर्तव्य के निर्वहन के साथ इबादत के लिए वक्त निकाल रहे हैं। रोजा के कठिन नियमों का पालन करते हुए कर्तव्य पथ पर डटीं ऐसी ही कुछ महिलाओं ने रमजान के प्रति अपना नजरिया पेश किया। इनमें एमबीबीएस छात्रा अफिया नूर, सहकारिता पदाधिकारी अफसाना रूही व जदयू नेत्री अंजुम आरा ने माह-ए-रमजान व इंसानी फर्ज के बारे में खुलकर बात की।
धार्मिक और हेल्थ दोनों नजरिये से रोजा का महत्व : सैयद आफिया नूर

पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएम) में एमबीबीएस की छात्रा सैयद अफिया नूर ने रमजान के फजीतल पर रोशनी डालते हुए कहा कि धार्मिक और हेल्थ दोनों में रोजा का काफी महत्व है। रोजा सिर्फ भूखे या प्यासे रहने की परंपरा मात्र नहीं है बल्कि रोजे के दौरान कुछ मानसिक और व्यावहारिक बंधन भी जरुरी बताए गए हैं। रोजे के दौरान रोजेदार को किसी की बुराई करने व सुनने से बचना चाहिए। मुसलमानों में परहेजगारी पैदा करने बेहतरीन जरिया है कि सिर्फ अल्ला की रज़ा के लिए साल में एक महीना आप खाने, पीने, सोने, जागने के वक्त में तब्दीली करते हैं।
रमजान का महीना मुसलमानो के सब्र के इम्तिहान खास महीना है। रोजेदार भूखा होता है लेकिन खाने-पीने की चीजों की तरफ नहीं देखता। रमज़ान में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरुरी फर्ज होता है, औरत हो या मर्द जो भी बालिग हो गए सभी पर फर्ज है। उसी तरह जैसे 5 बार की नमाज अदा करना जरुरी है। रमज़ान के महीने में रोजा गहरी आस्था के साथ रखे जाते हैं। हर मर्द व औरत जो अक्ल वाला व तन्दुरूस्त हो उस पर साल में एक माह के रोजे रखना फर्ज है। रोजा न रखने वाला शख्स अल्लाह की नाफरमानी करता है। रोज़ा न रखना गुनाह.ए.कबीरा है।
भाईचारे और इंसानियत का पैगाम भी देता है रमजान : अफसाना रूही
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सहकारिता प्रसार पदाधिकारी अफसाना रूही ने माह-ए-रमजान पर रोशनी डालते हुए कहा कि हर मर्द व औरत जो अक्ल वाला व तन्दुरूस्त हो उस पर साल में एक माह के रोजे रखना फर्ज है। रमजान का बरकत वाला पाक महीना भाईचारे और इंसानियत का पैगाम भी देता है। रोजा सिर्फ दिनभर भूखा रहने का नाम नहीं बल्कि रोजा इंसान को इंसान से प्यार करना सिखाता है। रोजा गरीब भाइयों से मोहब्बत करने का जज्बा पैदा करता है। भूखे प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं।
रोजा अच्छी जिंदगी जीने का तरीका है। इसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए जरूरी हर बात की तरबियत देता है। पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के इर्द गिर्द घूमती है। रोजा इन तीनों चीजों पर सब्र रखने का पैगाम है। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख, दर्द और भूख, प्यास को समझने का महीना है ताकि रोजेदारों में भले बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो।
इंसानी रूह की तरबियत व पाकीजगी के लिए अल्लाह ने रमजान बनाया : अंजुम आरा

जदयू महिला अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की प्रदेश अध्यक्ष अंजुम आरा में रमजान की फजीलत पर रोशनी डालते हुए कहा कि दौड़-भाग और खुदगर्जी भरी जिंदगी के बीच इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा देने वाले रमजान माह में भूख-प्यास समेत तमाम शारीरिक इच्छाओं तथा झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर डालने जैसी सभी बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद रोजेदार को अल्लाह के बेहद करीब पहुंचा देती है।
उन्होंने कहा कि इंसान के अंदर जिस्म और रूह दो अहम चीजें हैं। आम दिनों में उसका पूरा ध्यान खाना-पीना और दीगर जिस्मानी जरूरतों पर रहता है लेकिन असल चीज उसकी रूह है। इसी की तरबियत और पाकीजगी के लिए अल्लाह ने रमजान बनाया है। बुराई पर अच्छाई हावी हो जाती है। इस महीने मुसलमान अपनी चाहतों पर नकेल कस सिर्फ अल्लाह की इबादत करते हैं। यह महीना सब्र का महीना भी माना जाता है। इस बात का ज़िक्र इस्लाम की धार्मिक किताब कुरआन में किया गया है।