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अयोध्या में श्री राम की मूर्ति बनाने के लिए शीघ्र शुरू होगा शालीग्राम शिला का उत्खनन

क्षमा पूजा व अन्य धार्मिक कार्य पूरे, एक सप्ताह के अंदर शुरू होगा खनन

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नेपाल से राजेश कुमार शर्मा की रिपोर्ट

नेपाल की कालीगण्डकी नदी के शालीग्राम पत्थर से बनेगी अयोध्या में भगवान राम की प्रतिमा

Voice4bihar News. श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति बनाने के लिए नेपाल में शालीग्राम शिला (पत्थर) का उत्खनन कार्य शीघ्र ही शुरू होगा। रविवार को क्षमा पूजा के साथ ही शिला उत्खनन शुरू करने की औपचारिकता पूरी हुई। एक सप्ताह के भीतर यहां पत्थर उत्खनन का काम भी पूरा कर लिया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि रविवार को कालीगण्डकी नदी के तट पर शिला का क्षमा पूजा पाठ किया गया, जिसमें नेपाल के गण्डकी प्रदेश प्रमुख पृथ्वीमान गुरुंग, गण्डकी प्रदेश सरकार के निवर्तमान मुख्यमन्त्री कृष्णचन्द्र पोखरेल नेपाली, बेनी नगरपालिका के प्रमुख सूरत केसी, अयोध्या स्थित राम मंदिर निर्माण समिति के सचिव राजेन्द्र सिंह पंकज व जानकी मंदिर के महन्त सहित अन्य गणमान्य लोगों ने शिला के क्षमा पूजा में हिस्सा लिया।

शालीग्राम शिला का हुआ विधिवत पूजन

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विदित हो कि नेपाल के मुस्तानग से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल दोमोदर कुण्ड मुक्तिनाथ से बह कर आने वाली कालीगण्डकी नदी को कृष्णगण्डकी के उप नाम से भी जाना जाता है। इसी नदी में ही मात्र शालीग्राम शिला पाए जाने की बात कही जाती है। अयोध्या मे निर्माणाधीन राम मंदिर में कालीगण्डकी के शिला को मुख्य मूर्ति के रूप मे ले जा रखने की तैयारी अंतिम चरण में है। खास बात यह है कि नेपाल को भगवान राम का ससुराल माना जाता है, और इस लिहाज से ससुराल की मिट्‌टी से श्रीराम की मूरत गढ़ी जाएगी।

करीब एक हजार वर्ष तक टिकाऊ रहने वाली शिला नेपाल से भारत आएगी

 

नेपाल में हिन्दू आस्था के कई केंद्र मौजूद

धार्मिक विश्वास है कि प्रसिद्ध मुक्तिनाथ मंदिर के प्रवेशद्वार के रूप में रहे म्याग्दी के गलेश्वर शिवालय में पवित्र कृष्णागण्डकी के 9 बीघा के क्षेत्रफल में फैले एक प्रसिद्ध गोलाकार चक्रशिला के उत्तर पूर्वी कोण में अवस्थित मंदिर के अंदर स्वयं उत्पत्ति ज्योतिर्लिङ्गेश्वर महादेव विराजमान हैं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार सतयुग में सती देवी के अग्नीकुण्ड में देह त्याग के पश्चात उनके मृत शरीर को लेकर शिव महादेव ने पृथ्वी का भ्रमण किया था। इस क्रम में गलेश्वर में आ कर गलापतन होने के बाद गलेश्वर नाम रखे जाने की बात धार्मिक ग्रन्थ में उल्लेखित है। वहीं ज्योतिर्लिङ्ग, शालिग्राम, जलकूण्ड, शंखचक्र, नागमणी आदि चक्राकार रूपी चिन्ह मानवनिर्मित न हो कर स्वंयम उत्पन्न होने की बात धार्मिक पुस्तकों में कही गयी है।

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