बेनीपट्टी नरसंहार : इन बच्चों की आंखों में भविष्य के सपने नहीं मौत का खौफ दिख रहा है
इन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा है अपने बाप को तड़प-तड़प कर दम तोड़ते
पटना (voice4bihar desk)। ऊपर की तस्वीर में जो बच्चे दिख रहे हैं उनकी आंखों में झांकिये। स्कूल में पढ़ने वाले इन बच्चों की आंखों में आपको भविष्य के सुनहरे सपने नहीं दिखेंगे। इन्होंने जो वस्त्र धारण किया हुआ है मिथिलांचल में उसे उतरी कहते हैं। उतरी अर्थात् वह वस्त्र जिसे किसी अपने को मुखाग्नि देते वक्त पहना जाता है। इन बच्चों ने उतरी इसलिए धारण किया है क्योंकि इनके बाप को मार दिया गया है। बेनीपट्टी नरसंहार में एक ही परिवार के पांच लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया है। इन चारो बच्चों ने अपने-अपने बाप को मुखाग्नि दी है इसलिए इनकी आंखों में भविष्य के सुनहरे सपने नहीं मौत का खौफ दिख रहा है। इन्होंने अपनी आंखों के सामने अपने बाप को तड़प-तड़प कर दम तोड़ते देखा है। परिवार के छोटे बच्चे अपनी मांओं से पूछते हैं कि कब आयेंगे पापा? इन मांओं के पास अपने मासूम के इन सवालों का कोई जवाब नहीं है।

नरसंहार के चार घंटे बाद मौके पर पहुंची पुलिस
मधुबनी के बेनीपट्टी थाने के महमदपुर गांव में होली के दिन इस बार खून की होली खेली गयी। दो पक्षों में अरसे से चले आ रहे विवाद के बीच एक पक्ष ने सुनियोजित साजिश के तहत सुरेंद्र सिंह के घर हमला कर पांच लोगों को मौत के घाट उतार दिया। सुरेंद्र सिंह रिटायर्ड फौजी हैं जबकि उनके एक अन्य भाई राम नरेश सिंह आरपीएफ से रिटायर्ड हैं। मरने वालों में रणविजय सिंह, राणा प्रताप सिंह, वीरेंद्र सिंह, अमरेंद्र सिंह और रुद्र नारायण सिंह शामिल हैं। इनमें तीन सगे भाई थे जबकि दो चचेरे भाई थे। इस हमले में तीन और लोग घायल हुए हैं जिनमें एक की हालत गंभीर बनी हुई है। पीड़ित परिवार का कहना है कि घटना के दिन सूचना मिलने के चार घंटे बाद पुलिस मौके पर पहुंची जबकि बेनीपट्टी थाने की दूरी घटनास्थल से महज तीन किलोमीटर दूर है।

कैसे कटेगा जीवन, कौन करेगा देखभाल
घटना के अगले दिन से महमदपुर गांव में राजनेताओं और आला पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के आने-जाने का सिलसिला लगातार जारी है। पक्ष-विपक्ष के नेता और जातिगत संगठनों से जुड़े लोग आते हैं सुरेंद्र सिंह और उनके परिवारजनों से मिलते हैं। साथ में दो-चार आंसू बहाते हैं। अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार बयान देते हैं। साथ आये नेता के समर्थक कुछ फाटो खींचते हैं, कुछ वीडियो बनाते हैं और चले जाते हैं। पीड़ित परिवार की महिलाएं और बच्चे पूछते हैं कि कैसे कटेगा उनका जीवन। कौन करेगा उनकी देखभाल। इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
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इलाके में वर्चस्व के लिए कर दिया नरसंहार
घटना को लेकर ग्रामीणों की अपनी-अपनी कहानी है। कोई इसे वर्चस्व की लड़ाई बताता है तो कोई इसे जातिगत दुश्मनी कहता है। नरसंहार के बाद तत्काल इसे जातिगत रंग देने की कोशिश भी शुरू हुई। इस मामले में पीड़ित पक्ष द्वारा दर्ज करायी गयी एफआईआर में 35 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया है। इन 35 लोगों में छोटी-बड़ी सभी जातियों के लोग है। इसके बाद कहा गया कि यह जातिगत दुश्मनी कम वर्चस्व की लड़ाई अधिक है।

नरसंहार का मुख्य आरोपी बनाया गया प्रवीण झा इस बार त्योंथ पंचायत से मुखिया का चुनाव लड़ने की तैयारी में था। वह इलाके में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है। कहा जाता है कि उसका जुड़ाव सत्ताधारी दल से है इसलिए पुलिस प्रशासन में उसकी अच्छी पकड़ है। पर इसी इलाके में रहने वाले सुरेंद्र सिंह जैसे लोग उसके वर्चस्व को चुनौती देते रहते हैं। जिससे वह इस परिवार से खार खाये बैठा था।
नवंबर में ही लिख दी गयी थी नरसंहार की पृष्ठभूमि
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बात नवंबर 2020 की है। गांव का एक तालाब सुरेंद्र सिंह के कब्जे में है। सुरेंद्र सिंह इसमें मछली पालन करते हैं। प्रवीण झा पर आरोप है कि वह अपने लोगों से इस तालाब से मछली मरवा लेता है और मना करने पर सुरेंद्र सिंह और उनके परिवार को धमकाता है। नवंबर 2020 में इसी तालाब से मछली मार लेने पर दोनों पक्षों में बड़ा विवाद हो गया था। ग्रामीणों का कहना है कि मछली चोरी के आरोप में सुरेंद्र सिंह के परिवार के लोगों ने अनुसूचित जाति के सुरेश्वर भारती नामक युवक की पकड़कर पिटाई कर दी थी। मामला पुलिस तक पहुंचा। इस मामले में प्रवीण झा की पहल पर सुरेंद्र सिंह के पुत्र संजय सिंह के खिलाफ अनुसूचित जाति एक्ट के तहत मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया जबकि संजय सिंह द्वारा दर्ज कराये गये मामले में पुलिस की कार्रवाई अब तक शून्य है।
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ग्रामीणों का कहना है कि होली के दिन हुए नरसंहार की पृष्ठभूमि उसी दिन रच दी गयी थी जब नवंबर में पुलिस ने संजय सिंह को जेल भेज दिया था। संजय सिंह के जेल जाने के बाद प्रवीण झा का मनोबल बढ़ा हुआ था। प्रवीण झा ने देखा कि यही मौका है जब सुरेंद्र सिंह के परिवार का सफाया किया जा सकता है। उसने उसी वक्त से इसकी प्लानिंग शुरू कर दी। एफआईआर में दर्ज है कि घटना के दिन महमदपुर गांव के ही अशोक सिंह के घर हमलावरों का जमावड़ा हुआ। वहां से निकले हमलावर सुरेंद्र सिंह के घर के बाहर गेहूं के खेत में छिप गये और मौका मिलते ही एक-एक कर पांच लाशें गिरा दीं।

सीमा पर दुश्मन खरोंच तक नहीं लगा सके……
मृतकों में बीएसएफ के सब इंस्पेक्टर राणा प्रताप सिंह भी हैं। राणा प्रताप जैसलमैर बॉर्डर पर तैनात थे। इन दिनों छुट्टी में घर आये हुए थे। उनकी बेटी कहती है कि सीमा पर दुश्मन पापा को खरोंच तक नहीं लगा सके और यहां अपनों ने उन्हें मार डाला। अब इस घर की मां और बेटियों की यही तमन्ना है कि हत्यारों को उन्हें सौंप दिया जाये, इंसाफ वे कर लेंगीं।
कांग्रेस और भाजपा खेमे में बंटे हैं ग्रामीण

बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर हत्यारों मे इतनी हिम्मत कहां से आयी कि उन्होंने पांच लाशें गिरा दीं। ग्रामीण इसके जवाब में कहते हैं कि इन्हें राजनीतिक वरदहस्त प्राप्त है। आप जब गांव के लोगों से बात करेंगे तो साफ पायेंगे कि यहां के लोग भाजपा और कांग्रेस में बंटे हुए हैं। दोनों पार्टियों के समर्थक इस गांव में हैं। ग्रामीण बताते हैं कि पीड़ित पक्ष कांग्रेस समर्थक है जबकि हमलावरों का संबंध भाजपा से है। इस मामले में बेनीपट्टी के भाजपा विधायक विनोद नारायण झा का नाम हमलावरों के संरक्षक के तौर पर सामने आने के बाद उन्होंने वीडियों जारी कर सफाई भी दी है। घटनास्थल हरलाखी विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। विनोद नारायण झा ने कहा कि अपने 40 सालों के राजनीतिक जीवन में वे ऐसे लोगों से संपर्क की बात कभी सपने में भी नहीं सोच सकते हैं। वे चाहते हैं कि हत्यारों को फांसी की सजा हो इसके लिए वे अपने स्तर से प्रयास करेंगे। समाज के बाकी लोग भी इसमें मदद करें।
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करणी सेना ने हरसंभव मदद की बात कही

पटना से महमदपुर गये करणी सेना के प्रतिनिधियों ने कहा कि नौकरी, व्यापार और खेती-किसानी से जुड़ा मध्यमवर्गीय परिवार आज उजड़ गया। करणी सेना के दानापुर नगर अध्यक्ष राॅकी सिंह ने कहा कि पुलिस की मिलीभगत से नरसंहार का मुख्य अभियुक्त प्रवीण झा भागकर नेपाल में जा छुपा। उन्होंने कहा कि नरसंहार के किसी भी मुख्य अभियुक्त को पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर सकी है। करणी सेना ने पीड़ित परिवार की हरसंभव मदद करने की बात कही है।