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कुसहा त्रासदी : 13 साल बाद भी पीड़ितों को याद है तबाही का मंजर, कोसी की हर हलचल पर सिहर जाते हैं लोग

अररिया जिले के चार प्रखंडों की 64 पंचायतों के लगभग 102 गांवों ने झेली थी तबाही

वर्ष 2008 में आई कुसहा त्रासदी की खौफनाक तस्वीरें।
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करीब 95 हजार परिवारों के तीन लाख 95 हजार लोगों ने देखा था खौफ का मंजर

20 अगस्त की दोपहर में भरगामा तथा फारबिसगंज प्रखंड में हुई थी बर्बादी की शुरुआत

राजेश कुमार शर्मा की रिपोर्ट

जोगबनी (Voice4bihar news)। वर्ष 2008 में कुसहा त्रासदी की शक्ल में कहर बरपाने वाली कोसी नदी की विनाशलीला के 13 साल बीत गए लेकिन कोसी की गोद में बसे बिहार के कई जिलों के लोग इस त्रासदी से उबर नहीं पाये हैं। खासकर नेपाल से सटे बिहार के अररिया व सुपौल जिले के लोगों ने त्रासदी का जो मंजर 13 वर्ष पूर्व देखा था, वह आज भी डराता है। अब भी बरसात के मौसम में कोसी की हर स्थिति पर नजरें टिकी रहती है और छोटी सी अफवाह पर लोग खौफजदा हो जाते हैं। अगस्त 2008 की 18, 19 व 20 तारीख की आपबीती लोगों को अब भी पूरी तरह याद है। सहरसा, मधेपुरा, सुपौल व अररिया के लिए वह काला दिवस था।

नेपाल में 18 अगस्त को टूटा था कोसी नदी का बांध

हर वर्ष बाढ़ की पीड़ा देने वाली कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है, लेकिन वर्ष 2008 की तबाही अप्रत्याशित थी। नेपाल में कोसी नदी का बांध 18 अगस्त को टूटा था, लेकिन 19 अगस्त को दिन का उजाले होने तक अररिया जिले के कई प्रखंडों में नदी का पानी उफान मारने लगा। शाम ढलते ही अचानक कई गांवों में नदी का पानी घुस गया। लोग कुछ समझ पाते तब तक पूरी तरह सैलाब से घिर चुके थे। लोग किसी तरह अपनी जान बचा कर बाहर निकल जाने के लिए जद्दोजहद में लगे थे। सरकारी सहायता की आस में पूरी रात तबाही के मंजर को देख रहे थे।

15 किलोमीटर के दायरे में बहने लगी कोसी की मुख्यधारा

कुसहा बांध टूटने के बाद पानी का ऐसा सैलाब आया कि तटबंध के दायरे से बाहर निकलकर नदी ने बस्तियों को तबाह करना शुरू कर दिया। अररिया जिले के नरपतगंज से लेकर सुपौल जिले के प्रतापगंज तक करीब 15 किलोमीटर भूमि कोसी नदी की मुख्यधारा में तब्दील हो गई थी। हजारों की संख्या में लोग जान बचाकर स्कूलों, नहरों एवं अन्यत्र ऊंचे स्थानों पर जा रहे थे। तबाही के मंजर के काफी समय के बाद नरपतगंज के नाथपुर में सेना ने अपना अस्थायी केन्द्र बनाकर बचाव कार्य तेज किया।

सुपौल व अररिया जिले में लाखों की आबादी हुई थी सैलाब से प्रभावित

2008 की प्रलंयकारी कोसी की बदली धारा ने सबसे ज्यादा अररिया के बाद सुपौल जिले में तबाही मचाई थी। सरकारी आंकड़े के अनुसार अररिया जिले के लगभग 95 हजार परिवारों के 04 लाख लोगों का जीवन अंधेरे में चल गया था। इनके पास न तो खेती बची थी और न ही जीवन जीने का कोई अन्य साधन। कुसहा बांध टूटने के लगभग 17 घंटे बाद 19 अगस्त को कोसी की धारा ने अररिया जिले के नरपतगंज प्रखंड में रौद्र रूप दिखाना शुरू किया था। अगले ही दिन 20 अगस्त को दिन के 12 बजे भरगामा तथा तीन बजे फारबिसगंज प्रखंड में कोसी की बर्बादी की मंजर की शुरुआत हुई थी।

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22 अगस्त को कोसी ने रानीगंज प्रखंड को अपनी आगोश में समेट कर पूर्णिया की ओर रूख किया था। इसके बाद तो समय के साथ लोग घिरते चले गए थे। तबाही बढ़ती चली गई थी। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार प्रलंयकारी बाढ़ ने अररिया जिले के चार प्रखंडों की 64 पंचायतों में तबाही मचाई थी। यहां लगभग 102 गांवों के करीब 95 हजार परिवारों के 3.95 लाख लोग मुसीबत में घिर गये। इसके अलावा इन तीनों प्रखंडों में तकरीबन 44 हजार 947 हेक्टेयर में खेती बर्बाद हो गयी थी। करीब नौ हजार मकान भी क्षतिग्रस्त हो गए थे।

अररिया जिले की 12 पंचायतों में सबसे बड़ी तबाही

बाढ़ राहत नियंत्रण शिविर से संबंधित प्रतिवेदन के अनुसार अररिया जिले के चार प्रखंडों की 12 पंचायतें पूर्ण रूप से बाढ़ से प्रभावित थीं, जिनमें नरपतगंज के बेला, बबुआन और पथराहा, रानीगंज के विस्टोरिया, जगताखरसाही, मझुआ पश्चिम, काला बलुआ, कोशकापुर उत्तर, कोशकापुर दक्षिण, बगुलाहा, भरगामा के सिमरबनी व शंकरपुर पंचायतों में व्यापक तबाही मची थी।

उपजाऊ खेतों में बालू की परत आ जाने से बंजर हुई जमीन।
उपजाऊ खेतों में बालू की परत आ जाने से बंजर हुई जमीन।

45 हजार हेक्टेयर में लगी फसलें हुई थी बर्बाद

इन चारों प्रखंडों की 44 हजार 947 हेक्टेयर खेती को प्रभावित बताया गया था। इसमें नरपतगंज प्रखंड के सात हजार, रानीगंज के 6550 हेक्टेयर खेत शामिल थे। प्रतिवेदन में इन चारों प्रखंडों के कुल 8269 मकानों को क्षतिग्रस्त बताया गया था, इनमें नरपतगंज के 2885, फारबिसगंज के 1553, भरगामा के 2163 व रानीगंज के 1668 मकान शामिल थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मृतकों की संख्या दो थी।

तत्काल सहायता मिली लेकिन अब तक नहीं भरा तबाही का जख्म

नदी का कहर थमा तो पीड़ितों को क्षति के नाम पर 10 हजार रुपये देकर खानापूर्ति की गई। आज तक कोसी त्रासदी में पीड़ित हुए लोगों को आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। आज भी बाढ़पीड़ितों के खेत में बालू के ढेर होने के कारण फसल नहीं उग पाती है। कोसी की उफनती हुई धारा जिधर से गुजरी उधर बालू ही बालू नजर आने लगा था। पीड़ित लोग अब भी मंजर को याद कर सिहर जाते हैं। वैसे इस त्रासदी के बाद कई घोषणाएं हुईं, कई काम भी हुए, लेकिन बेहतर कोसी बनाने का सपना आज भी अधूरा है।

सहरसा, मधेपुरा व सुपौल जिलों के 526 लोगों की हुई थी मौत

कुसहा महा जलप्रलय में पांच सौ से अधिक लोगों को कोसी अपने साथ बहा ले गयी थी और 30 लाख से अधिक आबादी बेघर हो गयी थी। कुसहा त्रासदी में ध्वस्त हुए 66203 मकानों में मात्र 17 हजार मकान ही बन पाये हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सहरसा जिले में 41, मधेपुरा में 272 और सुपौल जिले में 213 लोगों की मौत हुई थी। कोसी आज भी उजड़ी हुई है। खेतों में बालू भरे हैं और लोग पलायन को मजबूर हैं। सैकड़ों किसानों को भूमि क्षति एवं फसल क्षति का लाभ नहीं मिलने का दुख आज भी बरकरार है।

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