पटना का महावीर मंदिर हथियाने के लिए हनुमानगढ़ी का नया पैंतरा, अपने स्तर से नियुक्त कर दिये महंत व पुजारी
हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन प्रेमदास ने किशोर कुणाल के खिलाफ दर्ज कराया मुकदमा
महावीर मंदिर के प्रमुख कर्ता-धर्ता आचार्य किशोर कुणाल ने किया पुरजोर विरोध
कहा- ऐसे तो हम भी किसी साधु को नियुक्त कर सकते हैं हनुमानगढ़ी के लिए नया महंत
पटना (voice4bihar desk)। पटना जंक्शन के पास स्थित महावीर मंदिर के वैभव व बढ़ती ख्याति को देखते हुए अयोध्या के हनुमान गढ़ी ने इस मंदिर पर स्वामित्व का दावा कर विवाद को जन्म दे दिया है। हनुमान गढ़ी अयोध्या इस मंदिर पर कब्जे के लिए इस कदर बेचैन है कि वह इस पर स्वामित्व के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार दिख रहा है। हालांकि इस दावे को आचार्य किशोर कुणाल ने अकाट्य तर्कों के साथ लगातार खारिज किया है।
इससे नाराज हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन प्रेमदास ने महावीर मंदिर पटना के लिए नया महंत व पुजारी नियुक्त कर दिया है। साथ ही आचार्य किशोर कुणाल के खिलाफ अयोध्या की एक अदालत में केस दायर कर दिया है। दूसरी ओर पटना महावीर मंदिर के प्रमुख कर्ता-धर्ता श्री कुणाल का कहना है कि पटना का महावीर मंदिर हनुमानगढ़ी से स्वतंत्र एक पृथक धार्मिक संस्था है, जो बिहार हिन्दू धार्मिक न्यास अधिनियम के तहत धार्मिक न्यास पर्षद् के अधीन कार्यरत है। अयोध्या के हनुमान गढ़ी से इसका कोई वास्ता नहीं ऐतिहासिक जुड़ाव नहीं रहा है।
क्या है पूरा विवाद
गौरतलब है कि करीब एक माह पहले ही उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या के हनुमान गढ़ी ने बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद् को पत्र लिखकर महावीर मन्दिर, पटना पर अपना अधिकार जताने के लिए दावा प्रस्तुत किया था। इसके साथ ही इस मंदिर को हथियाने के मकसद से जनसमर्थन जुटाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया था। आचार्य किशोर कुणाल ने इस दावे को खारिज किया तो हनुमानगढ़ी अयोध्या ने कड़ा तेवर अपना लिया है।
पिछले दिनों ही पद से हटाये गए थे पुजारी सूर्यवंशी दास
इसे लेकर अयोध्या में रामानंदी निर्वाणी अखाड़ा हनुमानगढ़ी के पंचों की एक बैठक बुलाई गयी, इसके बाद हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महाराज प्रेमदास ने पटना के महावीर मंदिर के लिए अपनी तरफ से पुजारी व महंथ नियुक्त कर दिया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पिछले दिनों पुजारी के पद से हटाए जा चुके सूर्यवंशी दास फलाहारी को नया पुजारी घोषित किया गया है, जबकि महेंद्र दास को महंत बनाया गया है। माना जा रहा है कि हनुमानगढ़ी के इस कदम के बाद महावीर मंदिर पर स्वामित्व का विवाद काफी लंबा खिंचने जा रहा है।
आचार्य किशोर कुणाल ने महंत-पुजारी की नियुक्ति को बताया असंगत
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उधर, पटना महावीर मंदिर के प्रमुख कर्ता-धर्ता आचार्य किशोर कुणाल ने इस कदम का पुरजोर विरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह अतार्किक निर्णय है। ऐसे तो हम भी यहां बैठ कर हनुमानगढ़ी के लिए नया महंथ नियुक्त कर सकते हैं। इस तर्क से बौखलाए हनुमानगढ़ी के प्रेमदास ने आचार्य किशोर कुणाल के दावे को गलत बताकर व्यवहार न्यायालय अयोध्या में मुकदमा दायर कर दिया है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि महावीर मंदिर पर अधिकार जमाने की यह जंग किस अंजाम तक पहुंचता है।
यहां पढ़ें : हनुमानगढ़ी के दावे में कितना दम! पूरी खबर विस्तार से….
महावीर मंदिर के वैभव पर हनुमानगढ़ी की नजर
हनुमानगढ़ी अयोध्या की तरफ से यह दावा ऐसे वक्त में किया गया है, जब महावीर मंदिर की ख्याति देश स्तर पर तेजी से बढ़ी है। महावीर मंदिर पटना की ओर से अयोध्या में संचालित ‘राम-रसोई’ इन दिनों राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो रही है। साथ ही महावीर मंदिर की ओर से रामजन्म-भूमि मंदिर को प्रति वर्ष दो करोड़ रुपये का सहयोग दिया जा रहा है। इसके अलावा बिहार के चंपारण जिला अंतर्गत केसरिया के पास जानकी नगर में 270 फीट ऊंचे विराट रामायण मंदिर का निर्माण जारी है।
पटना में पांच बड़े अस्पतालों का संचालन करता है यह मंदिर
पटना के महावीर मंदिर की ख्याति धार्मिक क्रियाकलापों के साथ सामाजिक कार्यों की वजह से भी बढ़ी है। बिहार की राजधानी पटना में महावीर कैंसर संस्थान, महावीर वात्सल्य अस्पताल व महावीर नेत्रालय जैसे पांच विशाल अस्पतालों का संचालन महावीर मंदिर करता रहा है, जहां आम रोगियों का सस्ते दर पर इलाज किया जाता है। जाहिर है कि मंदिर की ख्याति व वैभव को देखते हुए इस पर स्वामित्व का दावा किया गया हो।
वर्तमान में महावीर मंदिर की कानूनी स्थिति
महावीर मंदिर, पटना उच्च न्यायालय के आदेश से सार्वजनिक मंदिर है। 1935 ई. से इसका संचालन न्यास समिति द्वारा होता आ रहा है। 1956 ई. में धार्मिक न्यास पर्षद् और महावीर मंदिर न्यास समिति के बीच समझौता हुआ था। इसके अनुसार न्यास समिति जब तक मंदिर का आर्थिक विकास करती रहेगी, न्यास पर्षद् इसके संचालन में हस्तक्षेप नहीं करेगी। 1958 ई. में पटना उच्च न्यायालय ने इस समझौते को स्वीकृति दी थी। 1990 ई. में धार्मिक न्यास पर्षद् ने इसके सुचारु संचालन के लिए एक विस्तृत योजना बनायी थी। इसके अनुरूप इी इसका संचालन होता है।
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