पूरे संसार में उपद्रव का कारण है माया : जीयर स्वामी
चेतन माया के कारण ही माताओं की आबरू से होता है खिलवाड़
voice4bihar desk. प्रख्यात संत श्री त्रिदण्डी स्वामी जी महाराज के परम शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी के प्रवचनों में पुराणों, आख्यानों के सार तत्व के साथ आज के मानव जीवन के लिए शिक्षा शामिल रहती है। उनका जीवन-चरित्र, श्रीमद्भागवत वाटिका का वह ब्रह्म पुष्प है, जहां उनके दर्शन मात्र से ही श्रीमद्भागवत लाभ का प्रत्यक्ष अहसास होने लगता है। इस कड़ी में रोहतास जिले के कोचस में प्रवचन करते हुए श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि माया दो प्रकार की होती है-एक जड़ माया तो दूसरी चेतन माया। सोना, चांदी, रूपया-पैसा, पृथ्वी, जल, आकाश, वायु, आकाश आदि जड़ माया है। जबकि संसार की माताएं (स्त्रियां) चेतन माया है। यही दोनों माया के कारण पूरी दुनिया में उपद्रव है।
इसकी व्याख्या करते हुए स्वामीजी ने कहा कि किसी का खेत दखल कर ले, किसी का खलिहान दखल कर ले, कहीं राष्ट्र सीमा में दखल हो रहा है, कहीं समुद्री सीमा में, किसी का पठारी क्षेत्र दखल कर ले, किसी का पर्वतीय क्षेत्र कब्जा कर ले….यही जड़ माया है। इसी के कारण विवाद व उपद्रव होते हैं। वहीं दूसरी माया चेतन होती है। जिसके कारण माताओं की आबरू से खिलवाड़ होता है। इन दोनों के कारण ही दुनिया में उपद्रव है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि इन दोनों के बिना काम भी नही चलेगा। ऐसे में पूरे संसार में इन दोनों के जरिये उपद्रव भी अवश्यमभावी है।
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भोगवाद द्वारा जीवन जीने के कारण होता है महाप्रलय
एक अन्य प्रसंग का जिक्र करते हुए स्वामी जी ने कहा कि महाप्रलय कब होता है? जब दुनिया में मर्यादा का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है, संस्कृति का कोई अस्तित्व मिटने लगता है और केवल भोगवाद के जरिये जीवन जीने लगते हैं, उस समय महाप्रलय होता है। भोगवाद का मतलब है -जैसे कुता, सियार आदि अनेकों प्रकार के पशुओं की तरह मानव भी जीने लगे। यदि यह मानते हैं कि मेरी दिनचर्या है कि कहीं अपने आप में भोजन कर लें, सो जाएं, संतानोत्पत्ति करें तो यही भोगवाद है।
केवल शरीर की प्रसन्नता, शरीर की संतुष्टि में अपने द्वारा किसी भी प्रकार का व्यवहार और वर्ताव करना मेरे शरीर और इसके अलावा दुनिया में कुछ नहीं होता है। इस प्रकार से जीने वाला व्यक्ति व जीने की शैली या प्रणाली का ही नाम भोगवाद है।