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सिस्टम का अंतिम संस्कार!

कोरोना से मरने वालों को ठीक से अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं

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आकिल हुसैन।

अगर भारत तीसरी लहर आने से पहले अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक नहीं की तो आने वाली कोरोना की तीसरी लहर में हम भगवान भरोसे ही रहेंगे। हम ऐसी बेबसी के आलम आ गए है कि कई सवाल खड़े होते हैं। हमें खुद से पूछना चाहिए कि आत्मविश्वास से भरा देश जो उभरते स्टार की तरह था, जो चीन के साथ मुकाबला करना चाहता था। वह अब एक ऐसे हालात में आ गया है कि विदेशी मदद ले रहा है।

         

भारत में कोरोना से भयावह हालात अभी जारी है। सिर्फ सरकारें घोषणा पर घोषणा कर रही हैं, परंतु केन्द्र से लेकर राज्यों की सरकारें कोई भी ठोस व्यवस्था कोरोना से निपटने के लिए करने में अभी तक विफल साबित हुई है। कई राज्यों में आक्सीजन सिलेंडर की कमी दूर करने, वेंटिलेटर युक्त बेड की व्यवस्था एवं रेमडेसिविर इंजेक्शन भारी मात्रा में उपलब्ध कराने में सरकारें विफल हो रही हैं। अब तो कई जगह से ऐसी खबरें आ रही हैं कि कोरोना से मरने वालों को ठीक से अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हो रहा। कुल मिलाकर कोरोना काल में सरकारी ‘सिस्टम का अंतिम संस्कार’ हो चुका है।

‘सिस्टम के अंतिम संस्कार’ होने की बात हम नहीं कह रहे, बल्कि बिहार के बक्सर से गुजरने वाली गंगा नदी में बहतीं सैकड़ों लाशें बयां कर रही हैं। पिछले दिनों बक्सर जिले के चैसा एवं सिमरी प्रखंड से गुजरने वाली गंगा नदी में लाशें तैरती नजर आयीं तो देश भर में खलबली मची। बिहार सरकार एवं बक्सर जिला प्रशासन चौकस होता है तथा नदी किनारे पड़ीं अधजली लाशों को निकालकर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की गयी। बुलडोजर से मिट्‌टी खोदकर लाशों को दफन जरूर कर दिया गया लेकिन गंगा नदी में तैरती लाशों ने व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है।

वैसे बिहार सरकार के अधिकारियों ने दावा किया है कि वे सभी लाशें गंगा नदी में उत्तर प्रदेश से तैरती हुई से आयी हैं। जिसका कारण है कि बक्सर जिला यूपी से सटा है। माना जा रहा है कि यूपी के बनारस, बलिया व देवरिया जिले से अधजली लाशें गंगा में बहा दी गई होंगी। जो नदी में तैरते हुए बिहार के बक्सर पहुंच गई। गंगा नदी में तैरती लाशें यूपी के निवासियों की हैं या फिर बिहार के लोगों की हैं, यह तहकीकात का विषय हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल मानवता का है! सवाल पूरी व्यवस्था का है!

बात तो यह भी उठने लगी है कि सिस्टम बनाने वाले ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर एक साल में केन्द्र से लेकर राज्यों की सरकारों ने स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरूस्त क्यों नहीं किया? जिंदा इंसानों को लाशों में बदलने से रोकने का प्रयास समय रहते क्यों नहीं हुआ? कोरोना की पहली लहर व दूसरी लहर के बीच मिली छह माह की मोहलत में अगर “सिस्टम को दुरूस्त” करने में लगाया गया होता तो शायद हालात ऐसे नहीं होते।

सच्चाई तो यह है कि इस मोहलत के दौरान तमा सियासी पार्टियां सिर्फ सत्ता की दौड़ में शामिल रहीं। वर्ष 2020 में बिहार एवं दिल्ली चुनाव के साथ-साथ वर्ष 2021 में पश्चिम बंगाल, असम, तमिनाडु, केरल एवं पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनाव में वक्त जाया किया। सिस्टम के शीर्ष पर बैठीं सरकारें भी स्वास्थ्य व्यवस्था दुरूस्त करने की बजाय शानदार स्टेडियम व मंदिर निर्माण का यत्न करती दिखी। कोरोना की पहली लहर के बाद सरकारें अगर वर्ष 2020 से जनता के स्वास्थ्य के प्रति फिक्रमंद रहतीं तो देश में बड़े-बड़े अस्पतालों का निर्माण कराया जाता एवं इन्हें नई टेक्नोलॉजी से लैस किया जाता

अब सवाल यहां तक पैदा होने लगा है कि जिस केन्द्र सरकार ने विदेशों से सहायता नहीं लेने की घोषणा की थी, वह सरकार अब कोरोना काल में विदेशी सहायता की ओर आखें टिकाए हुई है। जनवरी 2021 में पीएम मोदी ने विश्व आर्थिक मंच की दावोस सभा में दुनिया को सम्बोधित करते हुए कहा था कि भारत ने कोरोना महामारी पर काबू पा लिया है तथा इस तरह से दुनिया को एक बड़े संकट से बचा लिया है। उन्होंने यह भी दावा किया था कि उनकी सरकार ने कोरोना महामारी से निपटने के लिए एक ठोस स्वास्थ्य प्रणाली बना ली है। दुनिया ने उनकी बातों पर यकीन कर लिया।

भारतवासियों का मालूम है कि पीएम की “दावा करने की आदत” पर उनकी पहले भी आलोचना हो चुकी है। कई देशों में भारत के राजदूत रहे चुके राजीव डोगरा ने माना है कि डाक्टर मनमोहन सिंह अपने कामों का प्रचार कम करते थे। उनके अनुसार पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की सरकार ने जो भी सहायता की वह भोंपू लगाकर या फिर इश्तेहार करके नहीं की। इसके बावजूद वर्ष 2004 के दिसंबर में आए सुनामी के वक्त विदेशों में यह बात फैल गई कि भारत ने कितना अच्छा कदम उठाया है।

अब विदेशी मीडिया देखा रहा है कि किस तरह कोरोना महामारी की घातक दूसरी लहर भारत में कहर ढ़ा रही है। जिससे इसकी नाजुक स्वास्थ्य प्रणाली नष्ट होने के कगार पर है। शमशान घाटों पर जगह कम पड़ने पर शवों का अर्द्ध अंतिम संस्कार कर नदियों में बहाया जा रहा है। मरीज अक्सीजन के लिए तड़प रहे हैं। आइसीयू बेड एवं बेहतर चिकित्सा सहायता के अभाव में लोग मर रहे हैं। सरकार कोरोना संकट से निपटने में सुस्त पड़ गयी है। दर्जनों देश चिकित्सा सहायता भेज रहे हैं। मोदी सरकार कोरोना संकट से निपटने के बजाय अपने खिलाफ आलोचना और खुली बहस को दबाने में अधिक वक्त लगा रही है जो अक्षम्य है।

अब कोरोना की तीसरी लहर आने की चर्चाएं हो रही है। अगर भारत तीसरी लहर आने से पहले अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक नहीं की तो आने वाली कोरोना की तीसरी लहर में हम भगवान भरोसे ही रहेंगे। हम ऐसी बेबसी के आलम आ गए है कि कई सवाल खड़े होते हैं। हमें खुद से पूछना चाहिए कि आत्मविश्वास से भरा देश जो उभरते स्टार की तरह था, जो चीन के साथ मुकाबला करना चाहता था। वह अब एक ऐसे हालात में आ गया है कि विदेशी मदद ले रहा है।

कोराना की दूसरी लहर से भारत एवं पीएम मोदी की छवि को कितना नुकसान पहुंचा है, इस पर लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है। परंतु मोटे तौर यह जरूर कहा जा सकता है कि मार्च 2020 से मार्च 2021 के बीच भारत को जो कराना चाहिए था, वह इसने नहीं किया।

(यह लेखक के अपने विचार हैं। लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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