दुनिया के सबसे बड़े ऑक्सीजन उत्पादक देश में ऑक्सीजन के बिना थम रहीं सांसें
बेकाबू हालात के बावजूद लॉकडाउन करने से किसने बांध रखे हैं नीतीश कुमार के हाथ!

पिछले वर्ष जिस दिन पीएम ने कोरोना से बचने के लिए देश में लॉकडाउन की घोषणा की थी। उस दिन भारत में कोविड-19 के 519 मामलों की पुष्टि हुई थी तथा कोरोना संक्रमण से देश में नौ लोगों के मौत की पुष्टि की गई थी। जबकि आज भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या प्रतिदिन साढ़े तीन लाख से अधिक हो रही है तथा देश में कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या प्रति दिन दो हजार से ज्यादा है। देशभर में बेकाबू संक्रमण व नाकाफी हेल्थकेयर सिस्टम का विश्लेषण कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार आकिल हुसैन।
अपने दायित्व से भटकीं सरकारों को अदालतें दिखा रहीं रास्ता
Voice4bihar news. भारत की 130 करोड़ जनता कोरोना के बढ़ते प्रकोप को लेकर काफी चिंचित हैं। यह चिंता भी लाजिमी है, क्योंकि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। दुनिया के सबसे बड़े ऑक्सीजन उत्पादक देश में बढ़ते कोरोना के बीच ऑक्सीजन को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में हाहाकार मचा हुआ है। जो देश 75 सौ मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पाद करता है। परंतु सरकार ऑक्सीजन को ट्रांसपोर्ट करने का पर्याप्त माध्यम नहीं बना पायी। यही कारण है कि हम दुनिया के सबसे बड़े ऑक्सीजन उत्पादक रहने के बाद भी अपने देशवासियों के अमूल्य जीवन को बचाने में विफल हो रहे हैं।
लोकतंत्र में जनता के अधिकार को पूरा करना सरकार का दायित्व है परंतु कोरोना काल में सरकारें अपने दायित्व का निर्वहन करने में विफल हो रही हैं। अपने दायित्व से भटक रहीं सरकारों को उच्च न्यायालय रास्ता दिखा रहा है। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी खुद संज्ञान लेते हुए केन्द्र सरकार को फटकार लगाते हुए सवाल पूछा है कि ऑक्सीजन एवं उपयोगी दवाएं उपलब्ध कराने में विफल क्यों हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर हाल में ऑक्सीजन एवं जरूरी दवाइयां उपलब्ध कराएं। अब सवाल है कि चुनी हुई सरकार को आपदा से निबटने की सीख अदालतों को देना पड़े तो सरकार की मंशा सहज ही समझी जा सकती है। जिस पीएम ने पिछले वर्ष कोरोना को लेकर गंभीरता दिखाई थी, देश वासियों को बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था देने की बजाय थाली-घंटी बजवाई थी, आज कहां गायब हैं! आज देश में त्राहिमाम जैसे हालात के बीच संवेदनशीलता कहां गयी?
स्वास्थ्य संसाधनों की कमी के कारण बिहार में हालात बेकाबू
बिहार में सरकार की नाकामी के कारण सत्ताधारी एक पूर्व मंत्री की इलाज के अभाव में मौत हो जाती है। यहां हेल्थकेयर सिस्टम की हालत यह है कि अपने विधायक व पूर्व मंत्री मेवालाल चौधरी को उचित इलाज नहीं दे पाती है। इस पर जवाब देने की बजाय सरकार ने राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि करते हुए 21 रायफल की सलामी दिलाई। अब सवाल उठता है कि जिस सरकार के सिस्टम की खामियों के कारण इलाज के अभाव में सत्ताधारी एक पूर्वमंत्री की जान चली जाती है तो फिर राज्य की आम जनता स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति क्या उम्मीद रखेगी!
अब हर तरफ से उठ रही लॉकडाउन की मांग, क्यों बेबस है सरकार?
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अब जबकि बिहार में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा प्रतिदिन 12 हजार से नीचे आने का नाम नहीं ले रहा है। गांवों तक कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है और इतनी बड़ी तादाद में कोविड जांच करना संभव नहीं है, कई जगह से मांग उठ रही है कि संपूर्ण लॉकडाउन किया जाए। पिछले दिनों मुख्यमंत्री के साथ उच्चस्तरीय बैठक में दरभंगा के डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम ने स्पष्ट रूप से लॉकडाउन की वकालत की थी। कोरोना मरीजों के बीच मसीहा बनकर उभरे जाप सुप्रीमो पप्पू यादव ने भी हालात को नियंत्रण से बाहर बताते हुए स्वास्थ्य सेवा को सेना के हवाले करने की वकालत की है। इससे पहले बिहार कांग्रेस भी संपूर्ण लॉकडाउन की मांग कर चुकी है। 26 मार्च को बिहार बीजेपी ने भी हालात पर काबू पाने के लिए लॉकडाउन की आवश्यकता पर बल दिया। इसके बावजूद लॉकडाउन करने से मुख्यमंत्री के हाथ किसने बांध रखे हैं, यह बात समझ से परे है।
प्रधानमंत्री ने भी नहीं दिखाई गंभीरता, चुनावों में रहे व्यस्त
जो पीएम पिछले वर्ष कोरोना काल में कोविड-19 को लेकर काफी चिंचित थे तथा पूरे देश के स्वास्थ्य व्यवस्था की निगरानी स्वयं कर रहे थे, वे आज पश्चिम बंगाल के चुनाव में व्यस्त हैं। व्यस्त तो पिछले साल भी थे, जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए तमाम हथकंडे अपनाये जा रहे थे। शायद इसी वजह से लॉकडाउन में विलम्ब हुआ। इस बार भी पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों के चुनाव हैं।
पिछले वर्ष जिस दिन पीएम ने कोरोना से बचने के लिए देश में लॉकडाउन की घोषणा की थी। उस दिन भारत में कोविड-19 के 519 मामलों की पुष्टि हुई थी। तथा कोरोना संक्रमण से देश में नौ लोगों के मौत की पुष्टि की गई थी। जबकि आज हालत यह है कि भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या प्रतिदिन साढ़े तीन लाख से अधिक हो रही है तथा देश में कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या प्रति दिन दो हजार से ज्यादा है। हर ओर लोग अपनों के शवों को लेकर जाते हुए देखे जा रहे हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 22 अप्रैल 2021 तक देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 1 करोड़ 59 लाख 30 हजार 965 पहुंच चुकी थी। जबकि कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या 1 लाख 84 हजार 657 पहुंच गई है। ऐसे हालात में देश के प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को लेकर मशगूल हैं। आज महाराष्ट्र, दिल्ली, यूपी, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक,केरल,पंजाब,असम राज्यों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल जहां चुनाव हो रहे हैं वहां भी कोरोना मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमित की संख्या-22 हजार है। जबकि मरने वालों की संख्या-10390 है। कोरोना संक्रमण से प्रभावित राज्य महाराष्ट्र है। जहां पांच लाख से उपर संक्रमण की संख्या है। जबकि मरने वालों की संख्या-57538 पहुंच चुकी है। बिहार में संक्रमित की संख्या-12 हजार है एवं मरने वालों की संख्या-16 सौ पहुंच चुकी है। यूपी में संक्रमण की संख्या 59 हजार है एवं मरने वालों की संख्या एक हजार तक पहुंच चुकी है। जबकि दिल्ली में संक्रमित मरीजों की संख्या-29 हजार है एवं मरने वालों की संख्या-11235 है। गुजरात में कोरोना से मरने वालों की संख्या-4746 पहुंच चुकी है।
स्वास्थ्य सेवा की बेहतरी के प्रति केंद्र सरकार बेपरवाह
छह वर्षो के शासनकाल में एनडीए सरकार ने एक भी बेहतर अस्पताल नहीं बनाया। आज उन्हीं 70 सालों की सरकारों द्वारा बनाए गए अस्पताल कमोबेस लोगों को स्वास्थ्य व्यवस्था दे रहे हैं। विगत एक साल पहले हुई महामारी की आहट व डॉक्टरों की चेतावनी के बावजूद हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने की दिशा में कोई गंभीर प्रयास नहीं दिखा। यही कारण है कि आज कोरोना काल में बेहतर स्वास्थ्य सेवा देश वासियों को प्रदान नहीं कर पा रहे हैं। शायद ‘आत्मनिर्भर भारत’ इसी व्यवस्था को कहते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)