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सरकार! कुछ कीजिए

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लाल बहादुर चौधरी

रकार! कुछ कीजिए। इसके पहले कि लोग आपको यह कहने लगें कि आपसे नहीं होगा, करके दिखा दीजिए। आपने वह सब कर दिखाया है जिस पर विश्वास करने के लिए हमने कई बार अपनी आंखें मली हैं। अब पाकिस्तानी सैनिक हमारे वीर जवानों के सिर धोखे से काट कर नहीं ले जाते, पिछले छह सालों में मुंबई हमले, संसद पर हमले, जहां-तहां आतंकी बम ब्लास्ट जैसी घटना नहीं हुई है। आपने दुश्मनों को उसके घर में घुस कर मार कर दिखा दिया है, पाकिस्तान को खाने के लाले पड़ रहे हैं, चीन के दबंगई के भ्रम को आपने तोड़ा है, वह सब कुछ हुआ जिस की एक अतृप्त कामना हम भारत के लोगों के मन में थी, परंतु पूरी नहीं होती थी।

हम आपको पा कर भर पाए, अब वह सब कुछ हो रहा है जिसको हम असंभव मान बैठे थे। अब हमारा सिर ऊंचा है। आपने आर्थिक क्षेत्र में भारत को आगे लाया है और अगर चाइनीज वाइरस वाला कोरोना नहीं आया होता तो आर्थिक क्षेत्र में भी हम कुछ और सुदृढ़ हो गए होते। सरकारी योजनाओं के लाभ भी लाभार्थी तक पहुंच रहे हैं।

सरकार! किसको मालूम था कि देश के बाहरी दुश्मनों से ज्यादा दुश्मन इसके भीतर हैं! बाहरी दुश्मनों को मारते हुए जब हमारे वीर जवान अपना लहू बहाते हैं तो बात समझ में आती है, परंतु आंतरिक दुश्मनों के द्वारा जब उनकी शहादत होती है तो हम बेचौन हो जाते हैं और यह पीड़ा असहनीय हो जाती है।

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सरकार ! कुछ लोग कहते हैं कि इन पर सैन्य कार्रवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि ये हमारे लोग ही हैं। अगर ये हमारे लोग हैं तो इनको अत्याधुनिक हथियार और आर्थिक मदद कहां से मिलती है, और ये हमारे सुरक्षा जवानों को क्यों मारते हैं ? क्या आप सप्लाई करते हैं! नहीं , तो क्या यह देश इतना सक्षम नहीं है कि इनके सप्लाई लाइन को काट सके ? शायद कुछ सियासी लोगों का समर्थन इनको प्राप्त है क्योंकि इनको वोट दिलाने में ये नक्सली इनके मददगार होते हैं।

सरकार! काट दीजिए इस नेक्सस को। केवल यह कहने से कि, इनका बलिदान व्यर्थ नहीं जायगा, काम नहीं चलेगा।

सरकार! बदनामी की चिंता छोड़िए। वैसे भी देश के आस्तीन में छिपे ये सांप आपक कौन सी प्रशंसा कर रहे हैं। इन अर्बन नक्सलियों, लिबरल गैंगों, टुकड़े गैंगों,  सर्जिल इमामों उमर खालिदों, ताहिर हुसैनौं, और वंशवादी पप्पुओं द्वारा देश और विदेश दोनों में आपको बदनाम किया जा रहा है कि भारत में कोई लोकतंत्र नहीं बचा है। तो कुछ दिन के लिए ऐसा ही सही। कुछ ऐसा तरीका ढूंढिए कि अदालती चक्कर से बचते हुए इनका संहार किया जा सके।

सरकार ! इन जवानों की जिंदगी उन नक्सलियों की जिंदगियों से लाख गुणा कीमती है। कुछ दिनों के लिए अलोकतांत्रिक हो जाइए सरकार! लोकतंत्र स्वयं आ जाएगा।

नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं।

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