नारी का एक ही परम धर्म है पति की मन क्रम वचन से सेवा : आचार्य दिलीप
सारण जिले के बनियापुर में चल रहा प्रवचन
छपरा (voice4bihar news)। सारण जिले के ग्राम पिठौरी तवकल टोला बनियापुर में श्री राम कथा के अभ्यारण कांड के प्रसंग में आचार्य दिलीप महाराज ने कहा कि नारी का एक ही परम धर्म है पति की मन क्रम वचन से सेवा करना। रामायण में माता अनुसूइया से सीता के प्रति नारी धर्म की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि “एक ही धर्म एक वृत्त नेमा, काय बच्चन मन पति पद प्रेमा।” उन्होंने कहा कि नारी का एक ही धर्म होता है जो प्रमुख धर्म है नारी अपने पतिदेव को मन क्रम वचन से सेवा करें। यही नारियों का परम धर्म है।
रामचरित मानस में चार तरह की पतिव्रता नारी का जिक्र
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गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चार प्रकार की पतिव्रता नारियों का व्याख्यान किया है। उत्तम वह पतिव्रता नारी है जो सपने में भी दूसरे पुरुष के दर्शन नहीं करती, मध्यम पतिव्रता नारी वह है, जो संसार के लोगों को भाई, पिता, पुत्र और निजी परिवार के रूप में देखती है। और जो निकृष्ट यानी तीसरे नंबर की पतिव्रता नारी है, वह धर्म को विचार करके, कुल को विचार करके पर पुरुष का दर्शन नहीं करती।
आचार्य दिलीप महाराज ने कहा कि आज जो सबसे अधिक नारी की तादाद है वह विचार तो करती है गलत रास्ते पर चलने का, लेकिन उनको अवसर प्राप्त नहीं होता या परिवार का भय होता है। इसको गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा “जानू अदम नारी जगत सोई” यह संसार की अधिकारियों की श्रेणी में मानी जाती है। और अंत में दिलीप जी महाराज ने कहा कि “पति प्रतिकूल जन्म जहां जाए” यानि जो नारी अपने पतिदेव से प्रतिकूल रहती है वह अगले जन्म में युवावस्था में ही वह विधवा हो जाती है।