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लोकसभा में पारस बने लाेजपा संसदीय दल के नेता

मां रीना पासवान को लोजपा अध्यक्ष बनाने का चिराग ने दिया प्रस्ताव

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पटना (voice4bihar desk)। पशुपति कुमार पारस को लोकसभा अध्यक्ष ने लोजपा संसदीय दल के नेता के रूप में मान्यता दे दी है। इसके साथ ही लोजपा में तख्ता पलट का एक अध्याय पूरा हो गया। लोजपा को टूटने से बचाने की चिराग पासवान की तमाम कोशिशें सोमवार को विफल साबित हुईं। रविवार तक छुपकर चिराग के खिलाफ चालें चलने वाले लोजपा के सभी सांसद सोमवार को मीडिया के सामने आये और एक-एक कर चिराग की बुराइयों गिनाई। सभी सांसदों की आम शिकायत थी कि चिराग पासवान सांसदों तक से बात नहीं करते।

इस बीच, सोमवार को चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस घर आये भतीजे से मिले तक नहीं। अलबत्ता उन्होंने भतीजे तक यह संवाद जरूर पहुंचाया कि वे चाहें तो उनके साथ रह सकते हैं पर होगा वही जो अब चाचा चाहेंगे। अर्थात् अब पार्टी में भतीजे का सिक्का नहीं चलेगा।

इसके पहले चाचा पशुपति कुमार पारस से मिलने उनके सरकारी आवास पर पहुंचे चिराग पासवान को काफी मशक्कत के बाद घर के कैंपस में एंट्री मिली। चिराग जब पशुपति के सरकारी आवास के गेट पर पहुंचे तो पहले की तरह दरवाजा खुला हुआ नहीं मिला। करीब 15 मिनट तक गाड़ी का हॉर्न बजाने के बाद गार्ड ने दरवाजा खोला। तब तक वहां काफी संख्या में मीडियाकर्मी भी जमा हो चुके थे। कई चैनलों पर सड़क पर आये इस पारिवारिक ड्रामे को लोग लाइव देख रहे थे।

चिराग के साथ उनकी गाड़ी में पार्टी के बिहार प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष राजू तिवारी भी थे। करीब 15 मिनट बाद जब दरवाजा खुला तो चिराग आवास में दाखिल हुए पर उनकी मुलाकात अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से नहीं हुई। सूत्र बताते हैं कि चिराग अपनी मां रीना पासवान को लोजपा अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव लेकर चाचा के पास गये थे। पर चाचा मिले नहीं सो इस प्रस्ताव पर बात ही नहीं हो सकी। करीब घंटा भर चाचा की गैर हाजिरी में चाची से बात कर चिराग अपने आवास को लौट आये।

पिता रामविलास पासवान के साथ चिरा्ग पासवान।

अब आगे क्या करेंगे चिराग

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चिराग अब आगे क्या करेंगे, फिलहाल उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया है। चिराग अगर अपने चाचा के सामने सरेंडर करते हैं तो पार्टी में उनकी हैसियत पहले वाली नहीं रहेगी। अगर अपनी राह चाचा से अलग करते हैं तो आम जनमानस उन्हें कितना स्वीकार करेगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है। पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें अपनी हैसियत का अंदाजा हो गया होगा जब 249 सीटों में से यहां तक की दलितों के लिए आरक्षित किसी सीट पर भी उनकी नहीं चली।

एक मात्र बेगूसराय की मटिहानी सीट जहां से लोजपा उम्मीदवार को जीत मिली वहां भी सवर्णों का बोलबाला है। बाद में मटिहानी से जीते लोजपा विधायक राजकुमार सिंह भी चिराग की पार्टी को गुडबाय कहकर जदयू में जा चुके हैं।

चिराग के लिए संतोष की बात केवल इतनी है कि जदयू अपनी हार के लिए उन्हें दोषी मानता है। यानी चिराग के उम्मीदवारों के वोट काटे जाने के कारण कई ऐसी सीट रही जहां जदयू और भाजपा उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा। राजद के विधायक भाई विरेंद्र ने चिराग को राजद में शामिल होने का खुला ऑफर दिया है पर कन्हैया कुमार से दूरी बनाने वाले तेजस्वी यादव चिराग को किन शर्तों पर स्वीकार करेंगे यह तय होना अभी बाकी है। कुल मिलाकर चिराग का राजनीतिक सफर अंधा कुआं के मुहाने पहुंच पर गया है। यहां से आगे कुआं में गिरने का डर है तो पीछे जाने का रास्ता बंद है।

चिराग के खिलाफ खुलकर बोलने लगे लोजपा सांसद

इस बीच लोजपा के पांचो सांसद खुलकर चिराग के खिलाफ मैदान में आ गये हैं। चिराग को मिलाकर लोजपा के कुल छह सांसद हैं जिनमें पांच ने उनके खिलाफ बगावत कर दी है। इन सांसदों ने सांसद पशुपति कुमार पारस को सर्वसम्मति से लोकसभा में पार्टी संसदीय दल का नेता चुन लिया। आज एलजेपी के बागी पांचों सांसद लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला से भी मिले।

इससे पहले पारस ने कहा कि हमारी पार्टी में छह सांसद हैं। पांच सांसद पार्टी के खत्म हो रहे अस्तित्व को बचा रहे हैं। पार्टी टूटी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि चिराग पासवान से कोई शिकायत नहीं है। वे पार्टी में रहें। उन्होंने कहा कि पार्टी के 99 फीसद कार्यकर्ता, सांसद, विधायक और समर्थक की इच्छा थी कि हम एनडीए का हिस्सा रहें, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

सांसद महबूब अली कैसर ने कहा कि चिराग पासवान संवाद कायम नहीं करते हैं। वे संवाद का कोई जरिया भी नहीं अपनाते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होने का फैसला सही नहीं था। अगर चिराग पासवान हमारे साथ आना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है। वे बहुत अच्छे वक्ता हैं।

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