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“तेजस एयरक्राफ्ट” से भी अधिक प्रखर था वैज्ञानिक मानस बिहारी का तेज

अपने दोस्त मिसाइल मैन की तरह खुद भी ताउम्र अविवाहित रहे मानस बिहारी वर्मा

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विज्ञान को नई ऊंचाइयां देने वाले वैज्ञानिक को अपनी मिट्‌टी से था खास लगाव

दरभंगा/पटना (voice4bihar news)। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक व तेजस फाइटर विमान बनाने वाली टीम के प्रोग्राम डायरेक्टर रहे मानस बिहारी वर्मा इस दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन उनकी निगरानी में बने “तेजस” की उड़ान के साथ उनका तेज जिंदा रहेगा। पद्मश्री डॉ. मानस बिहारी वर्मा 78 वर्ष की आयु में इस दुनिया से विदा हुए। सोमवार की रात 11:45 बजे अपने बहनोई डॉ बालेश्वर प्रसाद एवं बहन किरण प्रसाद के आवास लहेरियासराय में उन्होंने आखिरी सांस ली।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ 22 वर्षों तक काम किया

मिसाइल मैन के रूप में विख्यात पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ 22 वर्षों तक काम करने वाले बिहार की मिट्टी के लाल मानस बिहारी वर्मा ने पूरा जीवन रक्षा अनुसंधान में लगा दिया। डॉ वर्मा ने भी अपने मित्र डॉ कलाम की तरह पूरा जीवन अविवाहित रहकर गुज़ारा। वर्ष 2005 में बंगलौर स्थित एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी वैमानिक विकास अभिकरण से जब सेवानिवृत्त हुए। उस समय वह लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस के प्रोग्राम डायरेक्टर चीफ थे। तेजस का डिज़ाइन इन्हीं के कार्यकाल में तैयार किया गया था।

दरभंगा को बाऊर गांव को अपने सपूत पर नाज

दरभंगा जिले के अति पिछड़े घनश्यामपुर प्रखंड अंतर्गत कमला नदी के दियारा में बसे बाऊर गांव को अपने सपूत पर गर्व है। खास बात यह है कि तेजस लड़ाकू विमान की तीन महिला पायलटों में से एक भावना कंठ भी इसी गांव की रहने वाली हैं। अपने गांव से मानस बिहारी वर्मा का ऐसा लगाव रहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें बड़े शहरों की चकाचौंध नहीं खींच सकी।

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डॉ. वर्मा की वैचारिक उपज थी कम्युनिटी किचेन की शुरुआत

किसी बड़े शहर में रहने की बजाय उन्होंने ऐसे गांव को निवास के लिए चुना जहां न बिजली थी, न सड़क। बुनियादी सुविधाओं से वंचित बाऊर गांव में रहकर बच्चों व महिलाओं को शिक्षित करने का काम किया। वर्ष 2007 के प्रलयंकारी बाढ़ में कम्यूनिटी किचेन की शुरुआत डाक्टर वर्मा की ही सोच का नतीजा थी। जिसे बाद में युनिसेफ के प्रस्ताव पर हर जगह प्रयोग में लाया गया।

एनआईटी पटना व डब्लयूआईटी दरभंगा को भी दी सेवाएं

डब्लूआईटी दरभंगा का वर्ष 2005 में डॉ. कलाम के हाथों उद्घाटन हुआ था, जिसके प्रथम डायरेक्टर के रूप में मानस बिहारी वर्मा को कार्यभार सौंपा गया था तथा वर्ष 2014 से 2016 तक एनआईटी पटना में चेयरमैन के पद पर कार्यरत रहे। इसके साथ ही केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार जो वर्तमान में केंद्रीय विश्वविद्यालय साउथ बिहार के नाम से विख्यात है, उसमें बोर्ड एडवाइजरी के रूप में भी अपनी सेवा दी।

आखिरी सांस तक शिक्षा की अलख जगाते रहे डॉ. मानस बिहारी वर्मा

डॉ. मानस बिहारी वर्मा पुअर होम दरभंगा से भी जुड़े रहे और वर्ष 2010 से विकसित भारत फाऊंडेशन तथा अगस्त्या इंटरनेशनल फाउंडेशन नामक संस्था को अपनी पूरी टीम के साथ मोबाइल साइंस लैब द्वारा ग्रामीण सुदूर इलाके के सरकारी विद्यालयों के बच्चों के बीच पहुंचकर विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी को प्रयोग के माध्यम से सिखाने पढ़ाने का काम अपने अंतिम समय तक करते रहे। लगभग 1000 विद्यालयों के 4 लाख बच्चों को प्रयोग के माध्यम से सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त 30 लैपटॉप के माध्यम से बच्चों को 6 महीने के पूरे कोर्स को कराया जाता था।

“गरीबी हटाना है तो विज्ञान को घर-घर तक पहुंचाना होगा”

डॉ वर्मा का मानना था कि गरीबी मिटाने में विज्ञान का बहुत बड़ा योगदान है। विज्ञान को घर-घर पहुंचाने की जरूरत है। डॉ वर्मा को अब तक कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से भी सम्मानित किया गया। जिनमें प्रमुख एयरो सोसायटी ऑफ इंडिया फॉर इंडीजिनस डेवलपमेंट अवार्ड 1999, डीआरडीओ साइंटिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड 2001, टेक्नोलॉजी लीडरशिप अवार्ड 2004, पद्मश्री सम्मान 2018, राज्य के सर्वोच्च मौलाना आजाद शिक्षा सम्मान हैं। वर्तमान मे दरभंगा अभियंत्रण महाविद्यालय के चेयरमैन एनआईटी पटना के प्लानिंग एण्ड पॉलिसी के सदस्य कल्याणी फाउंडेशन ग्राम स्वराज्य अभियान समिति के साथ की संस्थानों का मार्ग दर्शन करते थे।

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