अगर सुनवाई नहीं हुई तो दो दिनों के लिए देश भर के दवा उद्योगों में ठप रहेगा उत्पादन
छोटे स्तर के फर्म को बचाने के लिए केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा से तत्काल हस्तक्षेप की अपील
Voice4bihar News. देश की दवा निर्माण व्यवस्था की रीढ़ कही जाने वाली छोटी व मझोली दवा निर्माण इकाइयां (Pharma MSME) आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही हैं। केंद्र सरकार की कठोर नीतियों और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की हालिया सख्त कार्रवाइयों ने इन इकाइयों को बंदी की स्थिति तक पहुँचा दिया है। इससे देशभर में जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति पर असर होने की आशंका है।
छोटी व मझोली दवा निर्माण कंपनियां बंद हुईं तो किफायती दवाओं का उत्पादन होगा ठप
इसी को लेकर ज्वॉइंट फोरम ऑफ फार्मास्यूटिकल एमएसएमई ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं रसायन-उर्वरक मंत्री जे.पी. नड्डा को विस्तृत ज्ञापन भेजकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। फोरम ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने राहत नहीं दी तो आने वाले महीनों में लगभग चार से पांच हजार इकाइयां बंद होने की नौबत में पहुंच जाएंगी, जिससे न केवल किफ़ायती दवाओं का उत्पादन ठप होगा बल्कि भारत का “दुनिया की फार्मेसी” के रूप में मिला गौरव भी संकट में पड़ सकता है।
बहुराष्ट्रीय व बड़ी कंपनियों के हित में बन नहीं नीतियां, Pharma MSME के खिलाफ हो रहा काम
बिहार दवा एवं उपकरण निर्माता संघ के अध्यक्ष संजीव राय ने यहां जारी विज्ञप्ति में कहा है कि ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने बीते वर्षों में जीएसटी सुधार व अन्य योजनाओं से उद्योग को आत्मविश्वास दिया और छोटे निर्माताओं ने गुणवत्ता सुधार में निवेश भी किया, लेकिन अब सीडीएससीओ की नीतियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े उद्योगों के हित में और छोटे निर्माताओं के खिलाफ काम कर रही हैं।
व्यापार सुगमता की अवधारणा को ध्वस्त कर रहे नए सर्कुलर
ज्ञापन में कहा गया है कि रोज़ाना जारी हो रहे नए सर्कुलरों ने व्यापार सुगमता की अवधारणा को ध्वस्त कर दिया है और उद्योग का भविष्य अधर में लटका दिया है। सबसे गंभीर समस्या 1 जनवरी 2026 से लागू होने वाले रीवाइज्ड शेड्यूल-एम मानकों को लेकर है, जिनका पालन भारी निवेश किए बिना संभव नहीं है और मौजूदा कर्ज़ बोझ में डूबी इकाइयाँ इसे वहन नहीं कर सकतीं, इसलिए मांग की गई है कि 50 करोड़ रुपये से कम वार्षिक टर्नओवर वाली इकाइयों को कम से कम 1 अप्रैल 2027 तक मोहलत दी जाए।
Farma MSME को सिलेक्टिव तरीके से निशाना बनाया जा रहा
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फोरम ने यह भी आरोप लगाया है कि रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन में भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है, जहां छोटे उद्योगों को सिलेक्टिव तरीके से निशाना बनाया जाता है, जबकि बड़ी कंपनियों की ओर से अमेरिका और अन्य देशों में हर महीने दवाओं की रिकॉल रिपोर्ट आने के बावजूद उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं होती।
जन औषधि केंद्रों व सरकारी दवा आपूर्ति व्यवस्था पर गंभीर संकट
एक और बड़ा संकट बायो-इक्विवेलेंस अध्ययन को लेकर है, जिसे दशकों से प्रमाणित दवाओं पर भी अनिवार्य कर दिया गया है और जिसकी लागत प्रति दवा 25 से 50 लाख रुपये है, जो छोटे उद्योगों के लिए मौत का फरमान है। इससे जन औषधि केंद्रों और सरकारी आपूर्ति व्यवस्थाओं में दवा संकट खड़ा हो जाएगा। इसी तरह एनडीसीटी नियम 2019 के अंतर्गत पहले से स्वीकृत दवाओं को “न्यू ड्रग” मानकर लाइसेंस वापस लेने की प्रक्रिया भी उद्योग के लिए घातक है।
केवल एडिक्शन व नशीली दवाओं पर ही लागू हो निर्यात एनओसी की बाध्यता
ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि निर्यात एनओसी को केवल नशीली और लत पैदा करने वाली दवाओं तक सीमित किया जाए, अन्य सामान्य दवाओं पर रोक लगाने से भारत अपना विदेशी बाज़ार चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका और वियतनाम जैसे देशों को खो रहा है। फोरम ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने तत्काल कदम नहीं उठाए तो उद्योग दो दिन का राष्ट्रव्यापी उत्पादन बंद (वेतन सहित) करने को बाध्य होगा।
सिर्फ 2.64 प्रतिशत दवाओं को गैर-मानक बताकर पूरी MSME इंडस्ट्री को बदनाम किया जा रहा
एनएसक्यू रिपोर्टिंग को लेकर भी फोरम ने कहा कि केवल 2.64 प्रतिशत दवाओं को गैर-मानक बताकर पूरी एमएसएमई इंडस्ट्री को बदनाम करना अनुचित है और मांग की कि दोषपूर्ण दवाओं के साथ-साथ मानक गुणवत्ता वाली दवाओं की सूची भी हर महीने जारी की जाए। इसके अलावा, दवा निर्माण इकाइयों में न्यूट्रास्यूटिकल्स और कॉस्मेटिक्स उत्पादन की अनुमति भी बहाल की जाए।
मुद्दे को लेकर एक मंच पर आए 21 से ज्यादा एसोसिएशन, सरकार को चेताया
इस जवलंत मुद्दे को लेकर देशभर की 21 से अधिक प्रमुख एसोसिएशनों ने संयुक्त मंच बनाया हैं, जिनमें सीआईपीआई, फोप, एसएमपीएमए, एचडीएमए (बद्दी), एचपीएमए (हरियाणा), केपीडीएमए (कर्नाटक), पीएमएटी (तमिलनाडु), डीएमएमए (गुजरात), एमपीपीएमओ (मध्यप्रदेश), आरपीएमए (राजस्थान), ओडीएमए (ओडिशा) और वीडीएमए (विदर्भ) सहित अन्य शामिल हैं।
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