10 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश ने अब तक सिर्फ एक बार पूरा किया अपना कार्यकाल
पहली बार बहुमत नहीं होने के कारण एक हफ्ते में ही देना पड़ा था इस्तीफा
पटना (voice4bihar news)। नीतीश कुमार अब तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में भले 10 बार शपथ ले चुके हों पर इतिहास गवाह है कि पिछले 25 सालों में सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है जब उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया है। बाकी के आठ कार्यकाल में वे बीच में ही इस्तीफा देकर शपथ लेते रहे हैं। अधूरा कार्यकाल का तगमा नीतीश कुमार के साथ केवल बिहार में नहीं रहा वे जब केंद्र में भी मंत्री रहे तब भी किसी ना किसी कारण से उन्होंने बीच में ही इस्तीफा दे दिया।
03 मार्च, 2000 को पहली बार ली थी शपथ
बिहार में बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने पहली बार शपथ 03 मार्च, 2000 को ली थी। उस वक्त उन्हें एक हफ्ते में ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। 2000 का बिहार विधानसभा चुनाव भारी उथल पुथल के बीच हुआ था। 1990 में बीपी सिंह के नेतृत्व में बना जनता दल 2000 आते-आते तीन टुकड़ों में बंट चुका था। पहले लालू प्रसाद के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अलग हुआ फिर शरद यादव के नेतृत्व में अलग समता पार्टी का गठन हुआ। मार्च 2000 में हुए चुनाव तक नीतीश कुमार के नेतृत्व में जनता दल से अलग होकर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का भी गठन हो चुका था।
मार्च 2000 में 324 सदस्यीय बिहार विधानसभा चुनाव में 124 सीटों के साथ राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जबकि उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा को महज 67 सीटें मिली थीं। 34 सीटों के साथ समता पार्टी तीसरे और 23 सीटों के साथ कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी। जदयू को 21 और झामुमो को 12 सीटें मिली थीं। मार्च 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त झारखंड राज्य का गठन नहीं हुआ था। भाजपा के पास सहयोगियों को मिलाकर कुल 151 विधायक थे जबकि लालू प्रसाद के पास 159 विधायक थे। बहुमत के लिए 163 विधायकों की जरूरत थी।
केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के सहयोग से राज्यपाल ने नीतीश कुमार को बतौर मुख्यमंत्री पद और गोपनियता की शपथ दिला दी पर वे सदन में बहुमत साबित नहीं कर सके और इस्तीफा देना पड़ा। बाद में राजद झारखंड बंटवारे पर सहमत हो गया और इस आधार पर राजद ने कांग्रेस, झामुमो और वामपंथी पार्टियों के सहयोग से सरकार बना ली। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। मार्च 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन होने पर बिहार में राबड़ी देवी की सत्ता बरकरार रही जबकि बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में झारखंड में भाजपा की सरकार बनी।
2005 में त्रिशंकु हुई विधानसभा तो दोबारा हुए चुनाव
2005 में बिहार में दो बार विधानसभा चुनाव हुए। मार्च 2005 में हुए चुनाव में परिणाम त्रिशंकु आए। यानी बहुमत किसी दल को नहीं मिला। इस चुनाव में राजद अकेला लड़ा जबकि भाजपा-जदयू और कांग्रेस-लोजपा साथ लड़ी। राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी, उसे 75 सीटें मिलीं। दूसरे नबंर पर जदयू को 55, भाजपा को 37 और लोजपा को 29 सीटें मिलीं। पांचवें नंबर पर रही कांग्रेस को महज 10 सीटें मिलीं।
जब सत्ता की चाबी लेकर घूमते रहे रामविलास पासवान
अलग झारखंड राज्य गठित होने के बाद बिहार में हुए 243 सीटों के इस चुनाव में सरकार बनाने के लिए 122 सीटों की जरूरत थी। इस चुनाव के बाद सरकार गठन में लोजपा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गयी। लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान के हाथों में 29 विधायकों के रूप में सत्ता की चाबी आ गयी। वे दलित अथवा मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ गये और किसी भी गठबंधन को समर्थन देने के लिए तैयार नहीं हुए।
2005 से 2010 तक लगातार मुख्यमंत्री रहे नीतीश
अंतत: बिहार में राष्ट्रपित शासन लागू किया गया और अक्टूबर 2005 में दोबारा विधानसभा के चुनाव हुए। इस बार जदयू और भाजपा गठबंधन को 143 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला। सबसे बड़ा नुकसान लोजपा को हुआ। मार्च में हुए चुनाव के मुकाबले अक्टूबर में उसे 19 सीटें गंवानी पड़ी और इस बार उसे महज 10 सीटों से संतोष करना पड़ा।
इस चुनाव में 88 सीटों के साथ जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनी। 55 सीटों के साथ भाजपा दूसरे, 54 सीटों के साथ राजद तीसरे, 10 सीटों के साथ लोजपा चौथे और 09 सीटों के साथ कांग्रेस पांचवें स्थान पर रही। नीतीश कुमार ने 24 नवंबर, 2005 को बतौर मुख्यमंत्री दूसरी बार शपथ ली और पांच साल का अपना कार्यकाल पहली बार पूरा किया।
2010 में राबड़ी भी हारीं, नीतीश ने तीसरी बार ली शपथ
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2010 का चुनाव बिहार में जदयू और भाजपा के लिए अब तक की सबसे बड़ी जीत वाला चुनाव है। इस चुनाव में इस गठबंधन को 243 में से कुल 206 सीटें मिलीं। सबसे बड़े दल के रूप में जदयू ने 115 जबकि दूसरे नंबर पर भाजपा ने 91 सीटों पर विजय पायी। राजद को महज 22 सीटों से संतोष करना पड़ा। वहीं कांग्रेस को चार और लोजपा को तीन सीटें मिलीं। यहां तक कि राबड़ी देवी भी राघोपुर से जदयू के सतीश कुमार के हाथों करीब 13 हजार वोटों से चुनाव हार गयीं। नीतीश तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।
राष्ट्रीय फलक पर नरेंद्र मोदी के आने से राजद को मिली संजीवनी
इस चुनाव के बाद आखिरी सांसे गिन रहे राजद को राष्ट्रीय फलक पर नरेंद्र मोदी के आने से संजीवनी मिली। 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किया। इसके विरोध में नीतीश कुमार भाजपा से अलग हो गए। नतीजा हुआ कि लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जदयू को करारी हार का सामना करना पड़ा। बाद में हार का जिम्मा लेते हुए नीतीश ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर जीतनराम मांझी को बिहार की बागडोर सौंपी। 17 मई, 2014 को मांझी ने शपथ ली। फिर 22 फरवरी, 2015 को नीतीश ने कमान वापस ली और चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
2015 के चुनाव में लॉन्च हुए तेजस्वी और तेज प्रताप
2015 का चुनाव नीतीश ने राजद के साथ लड़ा। इस चुनाव में लालू-राबड़ी के दोनों बेटे तेजस्वी और तेज प्रताप यादव चुनावी राजनीति में लॉन्च हुए। तेजस्वी राघोपुर से जबकि तेज प्रताप महुआ से विधानसभा पहुंचे। इस चुनाव में राजद 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। 71 सीटों के साथ जदयू और 27 सीटों के साथ कांग्रेस चौथे स्थान पर रही। महागठबंधन की इन पार्टियों ने 243 में से कुल 178 सीटों पर कब्जा जमाया।
हालांकि इस चुनाव में जदयू को सबसे बड़ा नुकसान हुआ। 2010 में जीती गयी 115 सीटों के मुकाबले 2015 में 44 सीटें गंवाते हुए उसे महज 71 सीटों पर संतोष करना पड़ा। वहीं राजद को 2010 के चुनाव के मुकाबले 58 और राजद को 23 सीटों का लाभ हुआ। इस चुनाव में भाजपा को भी पिछले चुनाव के मुकाबले 38 सीटों का नुकसान हुआ।
इस चुनाव ने यह भी सिद्ध किया कि बिहार में सत्ता पाने के लिए नीतीश जरूरी हैं। चुनाव परिणाम के बाद 20 नवंबर, 2015 को पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पहली बार विधानसभा पहुंचे तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री जबकि तेज प्रताप यादव मंत्री बने। हालांकि यह सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी।

सुशील मोदी ने खोली घोटालों की परत तो नीतीश पलटे
भाजपा के वरिष्ठ नेता और नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके सुशील कुमार मोदी ने जब एक-एक कर घोटालों की परत खोलनी शुरू की तो नीतीश कुमार फिर राजद को छोड़कर भाजपा के साथ आने के लिए मजबूर हो गए। 26 जुलाई, 2017 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर भाजपा के साथ हो लिए और 27 जुलाई, 2017 को छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
2020 के विधानसभा चुनाव में 75 सीटें जीतकर राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी पर उसे सत्ता तब मिली जब नीतीश पलटकर राजद के खेमे में आए। 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जदयू को पिछले चुनाव के मुकाबले 28 सीटों का नुकसान हुआ और महज 43 सीटें ही जीत सकी। हालांकि भाजपा और निर्दलियों के सहारे 16 नवंबर, 2020 को सातवीं बार मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली।
इस चुनाव में 74 सीटों के साथ भाजपा दूसरी बड़ी पार्टी थी। 09 अगस्त, 2022 को भाजपा से अनबन होने के बाद उन्होंने फिर NDA से नाता तोड़ा और राजद के साथ मिलकर सरकार बनायी। 10 अगस्त, 2022 को उन्होंने आठवीं बार मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली। करीब 17 महीने बाद वे फिर पलटे और 28 जनवरी, 2024 को इस्तीफा देकर भाजपा के साथ आ गए। 29 जनवरी, 2024 को उन्होंने नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में राजग को मिली बहुमत के बाद उन्होंने 20 नवंबर, 2025 को दसवीं बार मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली है।
यह बतौर मुख्यमंत्री शपथ लेने का अपने आप में रिकॉर्ड है। अगर वे अगले पाचं साल तक मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो बतौर मुख्यमंत्री उनका कार्यकाल पूरे देश में सबसे लंबा हो जाएगा। वर्तमान में सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री हैं। वे 12 दिसंबर 1994 से 26 मई 2019 तक यानी कुल 24 साल और 165 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे हैं।
