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दो देशों को ही नहीं, दो दिलों को भी जोड़ता है नेपाल का वराह क्षेत्र, कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है मेला

प्रकृति की मनोरम छटा के बीच बसा है भारत व नेपाल के लोगों की आस्था का अहम केंद्र

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हां कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले मेले में पहुंचते हैं कोशी क्षेत्र के हजारों श्रद्धालु

नेपाल के वराह क्षेत्र में विद्यमान है भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह का मंदिर

राजेश कुमार शर्मा की रिपोर्ट

Voice4bihar News. नेपाल का वराह क्षेत्र दो देशों को ही हीं बल्कि दो दिलों को भी जोड़ता है। रोटी बेटी का संबंध रखने वाला पड़ोसी देश नेपाल भौगोलिक दृष्टि के जरिए एक दूसरे के करीब है साथ ही अध्यात्म के माध्यम से भी एक दूसरे से जुड़ा है। भगवान विष्णु के दस अवतारों मीन, कच्छप, शुकर (वराह), नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध औऱ कल्कि में तीसरा अवतार अर्थात शुकर नेपाल के वराह क्षेत्र में विराजमान है।

वराह क्षेत्र को लेकर क्या है धार्मिक मान्यता

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आदिकाल में हिरण्याक्ष नामक दैत्य के अत्याचार से सारे जीव त्राहिमाम कर रहे थे। यहां तक कि उसने पृथ्वी को भी पाताल लोक में छिपा रखा था। सारे देवी -देवताओं ने भगवान विष्णु से पृथ्वी को बचाने की याचना की।

देवताओं की विनती पर भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का संहार किया और पृथ्वी को बाहर निकाला। वराह रूप होने के कारण उस स्थान का नाम वराह क्षेत्र पड़ा । मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो भी कोशी नदी का जल भरकर भगवान वराह को अर्पित करता है वह पुण्य का भागी बनता है।

जोगबनी से 55 किलोमीटर की दूरी पर है वराह क्षेत्र

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बिहार के सीमावर्ती शहर जोगबनी से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वराह क्षेत्र कोशी नदी की तलहटी में बसा है, जहां भगवान विष्णु का वराह मंदिर है। इस क्षेत्र के लोग नेपाल के बॉर्डर क्षेत्र विराटनगर होते हुए चतरागद्दी पहुंचते हैं।

नेपाल के वराह क्षेत्र स्थित वराह क्षेत्रधाम मंदिर में घूमते श्रद्धालु।
नेपाल के वराह क्षेत्र स्थित वराह क्षेत्र धाम मंदिर।

चतरागद्दी से पहाड़ी रास्ते से छह किलोमीटर दूर है मंदिर

चतरागद्दी में 10-12 बजे तक लोगों का जमावड़ा होता है। मध्य रात्रि के बाद से लोग मंदिर जाने के लिए प्रस्थान करते हैं, वहां से छह किमी दूर पहाड़ियों का रास्ता तय कर पहुंचना होता है। रास्ते भर वराह क्षेत्र की प्राकृतिक छटा, लोगों का रहन सहन, बोलचाल आदि को नजदीक से देखने व जानने का मौका मिलता है।

लगातार वर्षा के बाद दो दिनों तक बंद रास्ता फिर से खुला

कार्तिक पूर्णिमा यानि 5 नवंबर 2025 को बराह क्षेत्र में मेले का आयोजन होने वाला है, जिसमें नेपाल के साथ ही बिहार के कोशी क्षेत्र के हजारों श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। इस बीच चक्रवात के कारण पिछले दो-तीन दिनों से प्रतिकूल मौसम के कारण यहां पहुंचने का रास्ता बंद हो गया था। हालांकि मौसम ठीक होने के बाद फिर से मेले की तैयारियां शुरू हो गयी है।

श्रद्धालुओं से अपील- वराह क्षेत्र जाने से पहले पुलिस से अवश्य लें जानकारी

नेपाल-भारत सामाजिक सांस्कृतिक मंच के सलाहकार महेश साह स्वर्णकार ने बताया कि वराह क्षेत्र जाने वाला रास्ता रविवार की शाम से खुल गया है। उन्होंने कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर वराह क्षेत्र जाने वाले श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि किसी भी प्रकार की जानकारी व सहयोग के लिए वराह क्षेत्र मंदिर जाने से पूर्व कोशी पूल पर अवस्थित पुलिस बिट से जानकारी ले सकते हैं।

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