पिछले कुछ वर्षों से बिहार के अमरूद बगानों में इस रोग का प्रकोप दिख रहा
समस्तीपुर (Voice4bihar News)। बरसात के मौसम यानी जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीने में अमरूद में एन्थ्रेक्नोज जैसे खतरनाक रोग के लगने की संभावना काफी अधिक रहती है। पिछले कुछ वर्षों से अमरूद में लगने वाला यह रोग खासकर बिहार के अमरूद उत्पादक किसानों को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। अमरूद उत्पादक किसान वैज्ञानिक तकनीक से इस रोग का प्रबंधन कर अमरूद से स्वस्थ्य फल प्राप्त कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
ये बातें डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी पूसा के पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी के प्रोफेसर सह विभागाध्यक्ष एवं अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. संजय कुमार सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि जुलाई व अगस्त के महीने में अमरुद के फल में एन्ट्रक्नोज रोग का प्रकोप दिखाई देने लगता है।
पत्तियों पर काले या चॉकलेट रंग के अनियमित आकार के धब्बे दिखे तो हो जाएं सावधान
इस रोग के कारण अमरूद के पेड़ की डालियों के अंत में जो छोटी और कोमल नवजात पत्तियां होती है। उस पर काले या चॉकलेट रंग के अनियमित आकार के धब्बे बन जाते है साथ ही पत्तियां भी पीली हो जाती है। बाद में पत्तियां कमजोर होकर गिर जाती है। पत्तियों पर धब्बे बनने से आस पास की पत्तियां भी काली भूरे रंग की हो जाती है और ऊपर की टहनियां काली पड़ जाती है। इस वजह से नई कलियां फूल बनने से पहले ही कमजोर होकर गिर जाती है। अगर इनका समय पर इलाज न करें तो यह सूख कर गिर जाती है और धीरे धीरे पहले पूरी डाली सूख जाती है।
एन्थ्रेक्नोज एक फफूंद जनित रोग, कोलेटोट्राईकम नामक फफूंद जिम्मेवार
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इतना ही नहीं इस रोग के कारण फलों के ऊपर छोटे छोटे काले धब्बे दिखाई पड़ते है जो घंसे होते है और फल अंदर से सड़ जाते हैं। छोटी बिना खिली कलियां और फूल भी इस रोग के कारण समय से पहले ही सूख कर गिर जाती है। यह एक फफूंदजनित रोग है जो कोलेटोट्राईकम नामक फफूंद की वजह से होता है। इस रोग का फफूंद वसंत ऋतु में जब मौसम ठंडा और नमीयुक्त होता है। मुख्य रूप से पौधों की पत्तियों और टहनियों पर सर्वप्रथम उसी दौरान हमला करता है।
अमरूद की पत्तियों में लक्षण दिखे तभी करें बीमारी की रोकथाम
बारिश के मौसम (जुलाई व अगस्त-सितंबर) में इसका प्रकोप सर्वाधिक होता है। इस मौसम में लगातार नमी बने रहने के कारण रोग की उग्रता में भारी वृद्धि हो जाती है। एन्थ्रेक्नोज रोग का अगर समय पर इलाज न किया गया तो अमरूद की मोटी टहनियां भी सूखने लगती है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि जब यह रोग अमरूद के पत्तियों पर ही दिखाई देने लगे ठीक उसी अवस्था में इसका इलाज करने से अमरूद उत्पादकों को आशातीत लाभ मिलता है। जब यह रोग फलों को भी प्रभावित करने लगे तो इसका मतलब कि इस रोग का समय से रोकथाम नहीं किया गया।
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संक्रमित फल बुरी तरह सड़कर खराब हो जाते हैं
एक बार यह रोग अमरूद के फलों पर लग जाने के बाद बागवान को भारी नुकसान पहुंचता है। इस रोग से संक्रमित फल बुरी तरह सड़कर खराब हो जाते हैं तथा इस कारण वह बाजार में बिकने लायक ही नहीं रहते हैं। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि अमरूद एन्थ्रेक्नोज के प्रबंधन में निवारक उपायों और उपचार रणनीतियों का संयोजन शामिल है। एन्थ्रेक्नोज एक कवक रोग है जो कोलेटोट्राइकम ग्लियोस्पोरियोइड्स के कारण होता है। यह रोग पत्तियों, तनों और फलों सहित अमरूद के पेड़ के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर सकता है।
अमरूद के पौधों की नियमित छंटाई करना जरूरी
अमरूद एन्ट्रेक्नोज को प्रबंधित करने के लिए अमरूद उत्पादकों को अमरूद के पेड़ के आसपास के क्षेत्र को साफ सुथरा रखना चाहिए। कवक के प्रसार को कम करने के लिए प्रत्येक गिरे हुए पत्तियों, फलों या संक्रमित पौधे के सामग्री को जमीन से हटाकर दूर मिट्टी में डंप कर देना चाहिए। वायु परिसंचरण और सूर्य के प्रकाश के प्रवेश को बेहतर बनाने के लिए अमरूद के पेड़ की नियमित रूप से छंटाई करें। जरूरत के अनुसार पेड़ के आधार के आसपास की मिट्टी को सिंचने के उद्देश्य से पानी दें।
एन्थ्रेक्नोज रोग प्रतिरोधी अमरूद की किस्म लगाना भी एक विकल्प
पेड़ की उम्र के अनुसार समय समय पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करें। मिट्टी की नमी को संरक्षित करने, तापमान को नियंत्रित करने और बारिश के दौरान मिट्टी से पैदा होने वाले बीजाणुओं को पेड़ पर गिरने से रोकने के लिए पेड़ के आधार के चारों ओर जैविक गीली घास लगाएं। किसान अगर अमरूद का नया बाग लगाना चाहते है तो वे अमरूद के एन्थ्रेक्नोज रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। एन्थेक्नोज संक्रमण के लक्षणों को पहचानने के लिए नियमित रूप से अपने अमरूद के पेड़ का निरीक्षण करें। यदि कोई प्रभावित पत्तियां, तना या फल दिखाई दे तो उन्हें तुरंत हटा दें।।
कॉपर-आधारित या प्रणालीगत कवकनाशी का उपयोग करना जरूरी
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि अगर अमरूद का पेड़ एन्ट्रेक्नोज रोग से गंभीर रूप से प्रभावित है तो किसान अंतिम उपाय के रूप में कवकनाशी का उपयोग करने पर विचार करें। कॉपर-आधारित या प्रणालीगत कवकनाशी जैसे सक्रिय तत्त्व वाले कवकनाशी रोग के प्रसार को नियंत्रित करने में मदद कर सकते है। उन्होंने बताया कि हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल प्रणालीगत इसिस्टमिक फफूंदनाशी दवाई की 2 एमएल मात्रा को प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर उसमें आधा एमएल प्रति लीटर पानी के अनुसार स्टीकर मिलाकर पेड़ पर दो छिड़काव करें।
पहला छिड़काव फूल आने के 15 दिन पहले एवं दूसरा छिड़काव पेड़ में पूरी तरह से फल लग जाने के बाद करें। इससे रोग की उग्रता में भारी कमी आती है। अमरूद के पौधों पर 25 जून के आसपास इन दवाओं का स्प्रे करने से यह बरसात के मौसम में इस रोग से बचाव करता है और सर्दियों की फसल को सुरक्षित रखता है। उन्होंने बताया कि किसान ऊपर बताएं गए दवाओं के अलावे साफ कारबेंडाजिम 12 प्रतिशत या मैकोजेब 63 प्रतिशत दवा जो कि एक संपर्क व प्रणालीगत फफूंदनाशी है।
इन दोनों में से किसी एक दवाई की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर संक्रमित पेड़ो पर छिड़काव करें। इन दवाओं के स्प्रे से भी रोग की उग्रता में भारी कमी आती है। तीसरे विकल्प के रूप में उन्होंने बताया कि किसान एनपीके उर्वरक 19,19,19 की 4 ग्राम मात्रा को भी प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर संक्रमित पेड़ व फल पर छिड़काव करके रोग की उग्रता में कमी ला सकते है।