विधानसभा चुनाव हारने के बाद जदयू अपना कुनबा बढाने में जुटा हुआ है। बसपा और लोजपा के एक-एक विधायकों को जदयू अपने साथ जोड़ चुका है। अब इन पार्टियों का नामलेवा विहार विधानसभा में नहीं रहा। पिछले दिनों असदुद्दीन ओबैसी की पार्टी के सभी पांचों विधायक भी मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे थे। इसके अलावा जदयू की नजर ऐसे दलों पर भी है जो 2020 का विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार चुकी है। ऐसे दलों में सबसे बड़ा नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा है।
रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा रविवार को जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने पहुंचे थे। दोनों के बीच करीब 45 मिनट तक बातचीत हुई। मुख्यमंत्री से मिलने के बाद कुशवाहा ने कहा कि इसे राजनीति के नजरिये से नहीं देखना चाहिए। यह व्यक्तिगत मुलाकात थी। पर, दोनों बड़े नेताओं की मुलाकात के वक्त मौजूद रहे जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह का यह कहना कि बातचीत सकारात्मक हुई, फैसला उपेंद्र कुशवाहा को करना है, साफ बताता है कि यह मुलाकात व्यक्तिगत नहीं राजनीतिक ही थी।
नवंबर में विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद ही रालोसपा को लेकर तरह-तरह की बातें होने लगी थीं। तब से कहा जा रहा है कि कुशवाहा एनडीए में आना चाहते हैं पर जदयू चाहता है कि कुशवाहा अपनी पार्टी का जदयू में विलय करें। इसी मुद्दे पर बात आगे नहीं बढ़ सकी है। जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के इस बयान को कि तय उपेंद्र कुशवाहा को करना है, इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए।
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कुशवाहा अरसे से कहते रहे हैं कि नीतीश कुमार को अब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने उत्तराधिकारी को सत्ता सौंप देनी चाहिए। दबी जुबान से कुशवाहा चाहते रहे हैं कि उन्हें बिहार की सत्ता सौंपी जाये। पर अब तक ऐसा नहीं हुआ। पर, अब जब नीतीश कुमार विगत विधानसभा चुनाव को अपना अंतिम चुनाव कह चुके हैं और जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ चुके हैं तो उपेंद्र कुशवाहा को जदयू में खुद के लिए संभावनाएं दिख रहीं हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव के करीब एक साल पहले ही उपेंद्र कुशवाहा केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर एनडीए से अलग हो चुके थे। तब एक टीवी कार्यक्रम में नीतीश कुमार से एंकर ने कुशवाहा से जुड़ा सवाल पूछा तो उन्होंने जवाब देने से इनकार करते हुए कहा कि बहस को इतना नीचे मत ले जाइये। इसको लेकर बिहार में बड़ा बवाल हुआ था। कुशवाहा समर्थकों ने नीतीश पर नीच कहने का आरोप लगाते हुए उनके पुतले फूंके थे। बिहार के इन दोनों बड़े नेताओं के बीच हाल के विधानसभा चुनाव तक कड़वाहट चरम पर थी।
नीतीश और कुशवाहा की लड़ाई असल में कुर्मी और कोइरी वोटरों के बीच की लड़ाई है। बिहार में कोइरी वोटर 6 से 7 फीसद हैं जबकि कुर्मी वोटर इसके मुकाबले आधे ही हैं। आम तौर पर कुशवाहा नीतीश कुमार को बड़ा भाई कहते हैं पर उनके मन में यह भी है कि कोइरी वोटर जिसकी संख्या कुर्मी से अधिक है, उसी की बदौलत ही नीतीश मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमे हुए हैं। हालांकि इसी भ्रम के चलते 2019 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की दुर्गत हुई। दोनों चुनावों में उनकी पार्टी बिना एक भी सीट जीते मैदान से बाहर हो गयी। अब जाकर कुशवाहा को अपनी भूल का अहसास हुआ है और वे वापस नीतीश कुमार के साथ मिलकर अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाने के लिए तैयार दिख रहे हैं। हाल में नीतीश कुमार ने जदयू में कुर्मी-कोइरी के बीच संतुलन बनाने के लिए ही आरसीपी सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष और उमेश कुशवाहा को पदेश अध्यक्ष बनाया है।