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“सम्राट”-“अशोक” की सियासत को ब्रेक देंगे उपेंद्र कुशवाहा!

बिहार में एक 'तीर' से कई निशाना साधने की कोशिश तो नहीं

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सम्राट की बजाय मांझी को सीएम बनाना लव-कुश समीकरण का काला अध्याय

 

अभिषेक कुमार सुमन की रिपोर्ट

Voice4bihar news. ‘खुद का घर’ बनाने के नारों के साथ जातीय कार्ड खेलते हुए तथाकथित तौर पर स्वयंभू मुख्यमंत्री का उम्मीदवार माने जाने वाले पंखा छाप के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी सहित स्वयं को तीर में समाहित लिया। रालोसपा ने अपने दल का जनता दल यूनाइटेड में विलय कर दिया है, ऐसे में बिहार की राजनीति यू टर्न लेगी या नहीं, कहना मुश्किल है।

दूसरी ओर सत्ता पक्ष के घटक दल के रूप में बिहार की सियासत में सक्रिय भाजपा ने सम्राट चौधरी को मंत्री पद देकर सम्राट चौधरी का कद बढ़ाया है। सम्राट चौधरी बिहार की सियासत में कुशवाहा वोट बैंक राजनीति के भीष्म पितामह माने जाने वाले शकुनी चौधरी के पुत्र हैं, जो सियासत में उम्र से पहले चर्चित रहे हैं। यहां चर्चा मंत्री पद को लेकर ही होती रही है। पिछले 40 वर्ष से अधिक लंबे समय से बिहार की सियासत में सम्राट चौधरी की सियासी विरासत खड़ी है।

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि सम्राट चौधरी के बढ़ते कद को लेकर सियासी गलियारे में कुछ लोग सहमे-सहमे महसूस कर रहे हैं। हालांकि सम्राट चौधरी इन सब बातों को वाहियात मानते हुए कार्यकर्ताओं के मान सम्मान के साथ खुद की कर्मठता पर भरोसा रखने की बात करते हैं। साथ ही ईमानदारी पूर्वक किसी के साथ रह कर राजनीति करने की नसीहत सब को देते हैं और ईमानदारी-वफादारी को सबसे बड़ा अस्त्र-शस्त्र बताते हैं।

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उपेंद्र कुशवाहा की जनता दल यूनाइटेड में 9 साल बाद हुई वापसी को लव-कुश समीकरण का नाम दिये जाने पर सवाल उठाते हुए कुशवाहा कल्याण परिषद के रोहतास जिला संयोजक उमरेन्द्र कुमार सुमन ने स्पष्ट लहजे में इसे सियासी ढोंग-पाखंड बताया। साथ ही सवाल उठाया कि नीतीश कुमार को गद्दी छोड़ने की नौबत आई तो जीतन राम मांझी की बजाए तत्कालीन नगर विकास एवं आवास मंत्री रहे सम्राट चौधरी को गद्दी नहीं दिया जाना किस मानसिकता को दर्शाता है? यह कुशवाहा समाज बखूबी जानता है ।

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रातों-रात तख्ता पलट होने के बाद तत्कालीन मंत्री सम्राट चौधरी ने मंत्री पद देखते हुए पार्टी छोड़ने का कठोर निर्णय सिर्फ और सिर्फ अपने पिता शकुनी चौधरी के एक इशारे पर लिया था । श्री सुमन ने कहा कि जब कुशवाहा नेतृत्व के तौर पर सम्राट चौधरी का कद बढ़ रहा है तो सबको बेचैनी है और कुशवाहा गोलबंदी को ध्वस्त करने की साजिश रची जा रही है, जिसमें उपेन्द्र कुशवाहा जैसे अपने हीं लोग मोहरा साबित हो रहे हैं ।

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कुशवाहा कल्याण परिषद के रोहतास जिला संयोजक श्री सुमन ने स्पष्ट लहजे में कहा कि तत्कालीन मंत्री सम्राट चौधरी की बजाय जीतन राम मांझी को सीएम बनाना लव-कुश समीकरण के इतिहास में काले अध्याय के तौर पर कुशवाहा समाज याद रखेगा।

बिहार में कुशवाहा समाज की सियासत पर चर्चा करें तो उपेंद्र कुशवाहा पर उजियारपुर संसदीय क्षेत्र से आलोक मेहता जैसे कुशल नेतृत्व क्षमता वाले नेता के राजनीतिक कैरियर को विराम देने का आरोप भी पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से लगने लगा है। इसके अलावा काराकाट लोक सभा के प्रबल उम्मीदवार के तौर पर सासाराम के पूर्व विधायक डॉ अशोक कुमार के जदयू में शामिल होने के बाद से सियासी गलियारे में हलचल देखी जा रही है। विधानसभा चुनाव में जदयू के उम्मीदवार के तौर पर प्रत्याशी बनाया जाना आनन-फानन का निर्णय मानते हुए कुशवाहा समाज आज भी डॉ अशोक कुमार को काराकाट संसदीय सीट का प्रबल दावेदार मान रहा है।

पिछले बार डेहरी निवासी डॉ निर्मल कुशवाहा जनता दल यूनाइटेड के काराकाट संसदीय सीट के मजबूत प्रत्याशी के तौर पर माने जा रहे थे। इसी बीच अचानक पूर्व सांसद महाबली सिंह को उम्मीदवार बना दिया गया। बहरहाल कैमूरांचल की सियासत में काराकाट संसदीय सीट कुशवाहा सीट है। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा का जदयू में शामिल होना पूर्व विधायक डॉ अशोक कुमार, पूर्व सांसद महाबली सिंह के अलावा डॉ निर्मल सिंह कुशवाहा सहित कई नेताओं के राजनीतिक सफर में ब्रेकर साबित होगा।

बाकी बचे नेताओं को साथ रखना उपेंद्र कुशवाहा के लिए चुनौती

फिलहाल यहां देखना दिलचस्प होगा कि कुशवाहा समाज उपेंद्र कुशवाहा की खातिर सम्राट चौधरी, आलोक मेहता, महाबली सिंह, डॉ अशोक कुमार सहित दर्जनों नेताओं की सियासी सफर को कुर्बान करते हुए उपेंद्र कुशवाहा को अपना नेता मानता है या नहीं। फिलहाल उपेंद्र कुशवाहा को जदयू संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है।

आने वाले लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा का सियासी सफर नए मोड़ पर खड़ा होगा। उसके बाद उपेंद्र कुशवाहा की सियासी दिशा और दशा तय हो सकेगी। हालांकि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। वैसे उपेंद्र कुशवाहा के साथ रहने वाले मजबूत कार्यकर्ता वीरेंद्र कुशवाहा और मधु मंजरी ने राजद का दामन थाम लिया है। देखना होगा कि शेष बचे कार्यकर्ताओं के बिखरने से रोकने में उपेंद्र कुशवाहा कितना कारगर साबित होते हैं।

 

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