देवभूमि में त्रिवेंद्र के बदले तीरथ आये
भाजपा आलाकमान के इस निर्णय से अगले साल चुनाव में पार होगी पार्टी की नैया ?
पटना (voice4bihar desk)। भाजपा हाईकमान ने देवभूमि उत्तराखंड में पुराने टीएस रावत (त्रिवेंद्र सिंह रावत) को नये टीएस रावत (तीरथ सिंह रावत) से बदल दिया है। पर सवाल है कि यह बदलाव अगले साल उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की नैया पार लगायेगा अथवा बेड़ा गर्क होगा।

बुधवार को उत्तराखंड भाजपा विधायक दल की बैठक में नेता चुने जाने के बाद तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। उन्हें अगले करीब 11 माह के अपने कार्यकाल में जनता में भाजपा शासन के प्रति उपजे असंतोष को दूर करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है।
कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में भाजपा ने यह कदम झारखंड में मिले सबक के बाद उठाया है। 2019 में लोकसभा चुनाव में मिली बंपर जीत से गदगद भाजपा ने झारखंड के पार्टी विधायकों, कार्यकर्ताओं और वहां की जनता के असंतोष को नजरअंदाज कर दिया था। झारखंड में वर्ष 2019 में ही हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा आलाकमान ने वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री पर आंख मूंद कर भरोसा किया। नतीजा हुआ कि वहां न केवल भाजपा सत्ता से बाहर हुई बल्कि मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद भी चुनाव हार गये।
उत्तराखंड में भाजपा किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती है। यही कारण है कि भाजपा ने अगला चुनाव होने में एक साल से भी कम समय होने के बावजूद नेतृत्व परिवर्तन जैसा बड़ा और कड़ा फैसला लिया। भाजपा आलाकमान ने शनिवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने का फैसला लिया और बुधवार को तीरथ सिंह रावत ने नये मुख्यमंत्री ने शपथ ले ली।
शनिवार को दिल्ली से आये दूतों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत को पार्टी आलाकमान के फैसले की जानकारी दी। सोमवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिल्ली जाकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की और अपना पक्ष रखने की कोशिश की पर वहां उनकी नहीं सुनी गयी और देहरादून जाकर इस्तीफा देने को कहा गया।
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मंगलवार को रावत ने राज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा सौंप दिया। रावत पार्टी आलाकमान के निर्णय से कितने दुखी हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब पत्रकारों ने उनसे हटाये जाने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इसके लिए उन्हें दिल्ली जाना पड़ेगा।
उत्तराखंड में आम चर्चा है कि जनता से लगाव नहीं होने के कारण त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने पद से हाथ धोना पड़ा। यहां तक कि पार्टी विधायकों से भी उनका कोई सीधा संवाद नहीं था।
2017 में विधानसभा चुनाव में मिली एकतरफा जीत के बाद जब पार्टी ने उन्हें कमान सौंपी तो उन्होंने जनता दरबार लगाना शुरू किया। पर 2018 में जनता दरबार में शिक्षिका उत्तरा पंत से भिड़ंत के बाद उन्होंने इस परंपरा को भी बंद कर दिया। पंत पिछले करीब 25 सालों से पहाड़ पर स्थित एक स्कूल में तैनात थीं। वे अपना स्थानांतरण कराने का निवेदन लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार में गयी थीं पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर पुलिस उन्हें उठाकार वहां से ले गयी और दिन भर थाने में बिठाये रखने के बाद शाम में घर जाने की अनुमित दी।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जब शिक्षिका उत्तर पंत को भरे दरबार में डांट कर चुप कराने की कोशिश की थी तो उत्तरा ने भी उन्हीं की अंदाज में जवाब दिया था। इसी से मुख्यमंत्री चिढ़ गये थे। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने छोटे-बड़े करीब 45 विभाग अपने पास रखे हुए थे जिससे शासन का काम प्रभावित हो रहा था। पूरा शासन अधिकारियों के हाथों में सिमट कर रह गया था विधायकों तक की कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी।
तीर्थ स्थलों को श्राइन बोर्ड के दायरे में लाने से भी एक बड़ा तबका उनसे नाराज हो गया था। कहा जा रहा है कि पिछले माह कोलकाता जाने के दौरान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जेपी नड्डा जब एक रात के लिए उत्तराखंड में रुके थे तो उन्होंने वहां के साधु समाज से बात की थी। इस दौरान भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के विरुद्ध नाराजगी का इजहार साधु समाज ने किया था। हरिद्वार में चल रहे कुंभ में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के किये गये इंतजामों से न वहां की आम जनता खुश है और न ही साधु समाज। इन्हीं सब कारणों से जब भाजपा आलाकमान ने त्रिवेंद्र को हटाने का निर्णय लिया तो उनकी जगह तीरथ को बैठाया।
तीरथ सिंह रावत जनसंघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम करने के बाद भाजपा से जुड़े हैं। संघ प्रचारक और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में प्रांतीय महामंत्री व उपाध्यक्ष जैसे पदों पर वे वर्षों काम कर चुके हैं। जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य बना था उस वक्त वे विधायक थे। उत्तराखंड राज्य में वे मंत्री भी रहे। वर्तमान में वे लोकसभा के सदस्य हैं। अगले छह महीने में उन्हें खुद ने केवल उत्तराखंड विधान सभा का सदस्य बनना है बल्कि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को विजेता भी बनाना है। अब देखना है कि पार्टी आलाकमान की उम्मीदों पर तीरथ सिंह रावत कितने खड़े उतरते हैं।