नागरिकों को नागरिकता विहीन करने की व्यवस्था को उजागर करेंगे नाट्य कलाकार
नाटक 'ढकिया में नागरिकता' ने किया नेपाली नागरिकता कानूनों पर गंभीर चोट
मधेसी मूल की युवा नाट्य निर्देशक सरिता साह ने लाखों लोगों की पीड़ा को दी आवाज
नाटक का रिहर्सल हुआ पूरा, अगले 15 से 25 जनवरी तक होगा नाटक का मंचन
राजेश कुमार शर्मा की रिपोर्ट
जोगबनी (Voice4bihar news)। कहते हैं कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो कुछ भी सम्भव हो सकता है। नेपाल में ऐसे ही प्रयास व संघर्ष की गाथा लिख रही हैं- मधेसी मूल की युवा निर्देशक सरिता साह। इन्होंने नेपाल में नागरिकता में हो रहे विभेद को अपने नाट्क के माध्यम से दिखाने की तैयारी पूरी की है। नाट्य निर्देशक सरिता साह ने अपने नाटक ‘ढकिया में नागरिकता’ के माध्यम से उस वर्ग का दर्द उकेरा है, जो नागरिकता कानूनों की पेंचीदगी के चलते मानवीय अधिकारों से वंचित कर दिये जाते हैं।
सरिता के नाटकों में ऐसे कई विंदु मुखर होते हैं। यथा- जन्मसिद्ध नागरिकता पाए माता-पिता के बच्चे को किस तरह से वंशज के आधार पर नागरिकता विहीन बनाया गया है, विदेशी महिला नेपाली युवक संग विवाह के पश्चात श्रीमान की मृत्यु होने पर नागरिकता न होने के कारण राज्य की ओर से मिलने वाली विभिन्न सेवा सुविधा से किस तरह से वंचित रखा जाता है तथा नेपाल में भूमिहीन परिवार किस तरह से नागरिकता से वंचित किये गए हैं, इसका सजीव चित्रण ‘ढकिया में नागरिकता’ के जरिये किया गया है।
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नागरिकता कानूनों की पेंचीदगी में फंसा निरीह लोगों का हक
विकासशील व अविकसित देशों में नागरिकता कानूनों को जिस तरह राजनीतिक नजरिये से प्रभावित किया जाता है, उसका दर्द कई निरीह लोगों को सहना पड़ता है। अपने नाटक के माध्यम से लोगों तक अपनी बात कहने का प्रयास करतीं निर्देशिका सरिता साह ने कहा कि नेपाली राज्य सत्ता के द्वारा विभेद कर नागरिकता जैसे संवेदनशील विषय को नजर अन्दाज करने से लाखों नागरिक अनागरिक बने हैं। इस अनछुये पहलु को अपने नाटक के मार्फ़त आम नागरिक के समस्या को जनसमुदाय के समक्ष प्रस्तुत करने का सार्थक प्रयास है।
पुरुषवादी व नस्लवादी सोच के कारण छिन रही नागरिकता
नागरिकता के संबंध में राज्य द्वारा बनाए गए कानून का सही कार्यान्वयन नहीं होने से भी लाखों लोग नागरिकता विहीन बने हुए हैं। निर्देशिका साह ने कहा कि- नेपाल के संविधान में की गयी नागरिकता संबंधी व्यवस्था के कार्यान्वयन की समस्या तो गंभीर है ही, दूसरी तरफ पुरुषवादी व नस्लवादी सोच के कारण भी खास कर महिलाओं को नागरिकता लेने में काफी समस्या होती है। वहीं इस नाटक में दर्शाया गया है कि जन्मसिद्ध नागरिकता वालों की संतान को नागरिकता देने से राष्ट्रीयता समाप्त होगी। सरकार के इस विभेद पूर्ण इस डर को नाटक के मार्फत प्रस्तुत किया गया है।
‘ढकिया में नागरिकता’ नाटक का पोस्टर लॉन्च, 15 से 25 जनवरी तक मंचन
‘ढकिया में नागरिकता’ नाटक के पोस्टर सार्वजनिक करते हुए नाट्य निर्देशिका साह ने कहा कि इस नाटक का मंचन 15 जनवरी से 25 जनवरी तक हरेक दिन संध्या 4:30 बजे से शिल्पी थिएटर बत्तीसपुतली में किया जाएगा। नाटक को जीवंत रूप में प्रस्तुत करने के लिए इन कलाकारों ने अपनी तैयारी पूरी की है। नाटक में सरिता साह (महोत्तरी), अनिल कुर्मी (नवलपरासी), सुजिता साह (महोत्तरी), राज शर्मा पंगेनी (नवलपरासी), आदित्य मिश्रा (रौतहट), हाङ ओ राई (भोजपुर), रमिता यादव (सिरहा), संजय मुडियारी (मोरंग), सुदिप जंग कार्की (मोरंग), सुदिप पटेल (धनुषा), सुस्मिता पोख्रेल (सुनसरी) व प्रिन्स साह आदि अभिनय करेंगे।