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भारतीय दूतावास के भरोसे पर नेपाल में जिंदा है हिन्दी भाषा की उच्चतर शिक्षा

नेपाल के सबसे पुराने विश्वविद्यालय में हिन्दी की दुर्दशा, न पढ़ने वाले मिल रहे- न पढ़ाने वाले

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त्रिभुवन विश्वविद्यालय में स्थापना काल के साथ ही शुरू हुआ हिन्दी विभाग अब उपेक्षा का शिकार

62 वर्ष पहले रखी गयी थी विभाग की नींव, अब 4-8 विद्यार्थी ही कराते हैं स्नातकोतर में नामांकन

काठमांडू से लौटकर राजेश कुमार शर्मा की रिपोर्ट

Voice4bihar news. भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी को वैसे तो पूरे नेपाल में बोला और समझा जाता है लेकिन शिक्षा के स्तर पर इसकी उपेक्षा हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है। उच्च शिक्षा के स्तर पर नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में भले ही हिन्दी विभाग लंबे समय से कार्यरत है, लेकिन सरकार की उपेक्षा के कारण अब यह विभाग सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गया है। इस विभाग के साथ इस कदर सौतेला व्यवहार किया जाता है कि मासिक वेतन के अलावे कोई बजट ही नहीं दिया जाता। लिहाजा त्रिभुवन विश्वविद्यालय का हिन्दी विभाग अब भारतीय दूतावास की सहायता पर निर्भर हो गया है।

हिन्दी विभाग में सन्नाटा, न शिक्षक दिखे न कर्मचारी

भारत के निकटतम पड़ोसी देश नेपाल में आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक स्तर पर भारत का सीधा असर दिखता है। इनमें भाषायी एकता भी अहम भूमिका अदा करता है। दोनों देशों के बीच सामाजिक रिश्ते व भारतीय सिनेमा-साहित्य की लोकप्रियता की वजह से अधिसंख्य लोग हिन्दी भाषा बोलते व समझते हैं। इसके विपरीत त्रिभुवन विश्वविद्यालय के हिन्दी केंद्रीय विभाग में शुक्रवार को चौंकाने वाला नजारा देखने को मिला। विभाग में न कोई प्राध्यापक मौजूद था, न ही कर्मचारी। आश्चर्य इस बात का भी हुआ नेपाल के सबसे पुराने विश्वविद्यालय में मौजूद हिन्दी विभाग के बारे में नेपाल के लोगों को ही पता नहीं है।

शुक्रवार 03 सितम्बर को हमारी टीम त्रिभुवन विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में पहुंची तो इस विभाग की प्रमुख संजीता वर्मा खुद अपने चैम्बर का ताला खोलकर अंदर प्रवेश कर रही थीं। हिन्दी विभाग की दुर्दशा के बारे में पूछने पर संजीता वर्मा कहती हैं कि कई लोग तो यह सुन कर भी चौंक जाते हैं कि त्रिभुवन विश्वविद्यालय में भी हिन्दी विभाग है और उच्च स्तर पर हिन्दी भाषा की पढ़ाई होती है। यह हालात तब है जब इस विभाग की स्थापना के 62 वर्ष पूरे हो चुके हैं।

त्रिभुवन विश्वविद्यालय के सबसे पुराने विभागों में एक है हिन्दी केन्द्रीय विभाग

नेपाल के सबसे पुराने विश्वविद्यालय में वर्ष 1958 ईस्वी (विक्रम संवत 2016) में हिन्दी केन्द्रीय विभाग की स्थापना की गयी थी। तब से यहां हिन्दी की पढ़ाई कराई जाती है। कारण भारत व नेपाल के बीच के संबंध प्रगाढ़ होने के कारण भी इस विभाग को विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही संचालन में लाया गया था। दुर्भाग्य से नेपाल सरकार ने इस विभाग के प्रचार प्रसार में उदासीनता बरती और त्रिभुवन विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग अब तक छात्रों की अभिरुचि से ओझल है।

पोस्ट ग्रेजुएशन में हर वर्ष 4 से 8 विद्यार्थी कराते हैं नामांकन

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श्रीमती वर्मा ने बताया कि हिन्दी विभाग के प्रति विद्यार्थियों का आकर्षण नगण्य है। फिर भी विभाग के स्थापना काल से अब तक हिन्दी विभाग में हरेक वर्ष 4 से 8 छात्र नामांकन कराते रहे हैं। विभाग के अनुसार अभी तक कोई ऐसा वर्ष नहीं आया है, जिससे विद्यार्थी नहीं होने से विभाग खाली रहा हो, लेकिन एक चिंता साफ है कि हिन्दी विभाग को नेपाल सरकार से सहयोग नहीं मिला तो कहीं दोनों देशों को भाषाई एकता के सूत्र में पिरोने वाला विभाग ही संकट में न आ जाए।

हिन्दी विभाग के साथ नेपाल सरकार का सौतेला व्यवहार

इस विभाग के साथ इस कदर सौतेला व्यवहार किया जाता है कि मासिक वेतन के अलावे कोई बजट ही नहीं दिया जाता। फिलहाल यहां हिन्दी विभाग में तीन प्राध्यापक सहित चार शिक्षक हैं। नेपाली व हिन्दी भाषा एक दूसरे की पूरक होने के बावजूद न तो इसका पर्याप्त प्रचार प्रसार नहीं किया गया, और न ही हिन्दी भाषा का अध्ययन कर चुके विद्यार्थियों के लिए रोजगार कर दिशा में कोई योजना ही बनाई गई है।

कई क्षेत्रों में मातृभाषा है हिन्दी, नेपाल के पुराने अभिलेख भी मिलते हैं हिन्दी में

श्रीमती वर्मा बताती हैं कि नेपाल में कई जगहों पर हिन्दी भी मातृभाषा के रुप में बोली जाती है। नेपाल के पुराने अभिलेखों में भी हिन्दी का प्रयोग मिलता है। इसके बाद भी नेपाल में हिन्दी को भारत की भाषा के रूप में ही जानने समझने की एक सोच बनी हुई है। ऐसे में नेपालियों की सोच में परिवर्तन के लिए विशेष पहल की आवश्यकता है, ताकि वे समझ सकें कि हिन्दी असल में नेपाल की भी भाषा है। यह विडंबना है कि हिन्दी बोलने व समझने वाले लोग भी इसे विदेशी भाषा बोल कर अपहेलित करने से नहीं चूकते ।

क्यों कम हो रहे हैं हिन्दी विभाग में विद्यार्थी?

हिन्दी विभाग में सत्र 2017-18 में सात छात्र जबकि 2018-019 में भी सात विद्यार्थियों ने नामांकन कराया था। विभागीय प्रमुख वर्मा के अनुसार कई विद्यार्थी को तो यह भी नहीं पता है कि केन्द्रीय विभाग में हिन्दी की पढ़ाई होती है। सरकार भी प्रचार-प्रसार के लिए कोई बजट नहीं देती। हिन्दी विभाग को भारतीय दूतावास के अलावे कहीं से सहयोग नहीं मिलता। त्रिवि में कई विद्यार्थी भारत व अन्य देश से भी हिन्दी पढ़ने आते हैं लेकिन नेपाली विद्यार्थियों में इस विषय के प्रति कोई जिज्ञासा नहीं है।

स्नातकोत्तर में हिन्दी की पढ़ाई करने के लिए अंग्रेजी विषय देने की बाध्यकारी व्यवस्था

स्नातकोत्तर स्तर में हिन्दी विभाग में पढ़ने के लिए अंग्रेजी विषय देने का बाध्यकारी व्यवस्था भी विभाग में नामांकन की संख्या नहीं बढ़ने देती। प्राध्यापकों का तर्क है कि भारत में स्नातक में अंग्रेजी विषय ऐच्छिक है, लेकिन नेपाल में स्नातकोत्तर में हिन्दी विषय में नामांकन के लिए ऐसी शर्त रखी गयी है, जिसे पूरा करने वाले छात्र नहीं मिलते। यहां स्नातक में अंग्रेजी विषय में उत्तीर्ण होने वाले छात्र ही स्नातकोतर हिन्दी में एडमिशन ले सकते हैं।

विभागीय प्रमुख संजीता वर्मा के अनुसार हिन्दी का अध्ययन करने वालों को अंग्रेजी अनिवार्य रूप से पढ़ने की बाध्यकारी प्रणाली हटाने के लिए विश्वविद्यालय के साथ वार्ता की गयी थी, लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। उन्होंने बताया कि हिन्दी भाषा व नेपाली भाषा के बीच अन्तरक्रिया करना आवश्यक है। साथ ही भाषागत एकता व शुद्धता के लिए भी अन्तरक्रिया जरूरी रहने का इनका सुझाव दिया गया है।

यह भी देखें : भारत-नेपाल के बीच होगा फुटबॉल का रोचक मुकाबला

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