उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने पर भारी तबाही, बिहार सरकार भी अलर्ट
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को हालात से निबटने के लिए तैयार रहने को कहा
- बर्फ का सैलाब आने पर गंगा नदी का अचानक बढ़ सकता है जलस्तर
- उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे बने मकान खाली कराये जा रहे
voice4bihar desk. उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से आई प्राकृतिक आपदा का असर उत्तर प्रदेश व बिहार तक भी हो सकता है। इसे देखते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों को अलर्ट रहने का निर्देश दिया है। रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उत्तराखंड में बर्फ के सैलाब के कारण भयावह स्थिति को देखते हुए हमें भी सावधान रहने की जरूरत है। सीएम ने कहा कि उत्तराखंड में जो तबाही मची है उससे बिहार पर भी असर पड़ सकता है।
भारत के उत्तरी छोर पर हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा कोई नई बात नहीं है। बादल फटना, हिमस्खलन या केदारनाथ में आई बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को झेल चुके इस राज्य में एक बार फिर तबाही मची है। राज्य के चमोली जिले के जोशीमठ के रैणी गांव में ग्लेशियर फटने से पूरे इलाके में बफीर्ली पानी का सैलाब आ गया है।
इससे धौलगंगा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ गया है और ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट ध्वस्त हो चुका है। हालात को देखते हुए चमोली जिले के नदी किनारे की बस्तियों को पुलिस लाउडस्पीकर से अलर्ट कर रही है। कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी किनारे बसे लोग मकान खाली कराये जा रहे हैं।
चमोली में हिमखंड टूटने से कहर बनकर टूटा बर्फ का सैलाब
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तबाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ग्लेशियर के बर्फ टूट कर धौलगंगा नदी में बह रहे हैं, इससे राज्य में जान-माल की व्यापक तबाही का अंदेशा जताया जा रहा है। उत्तराखंड सरकार ने इस घटना के मद्देनजर श्रीनगर, ऋषिकेश, अलकनंदा समेत अन्य इलाकों के लिए अलर्ट जारी किया है और श्रद्धालुओं को सलाही दी है कि अलकनंदा की तरफ नहीं जाएं।
दूसरी ओर बिहार सरकार ने भी किसी भी हालात से निबटने के लिए तैयार रहने को कह दिया है। आशंका है कि हिमालय से निकलने वाली नदियों पर इस असर पड़ेगा। अलकनंदा नदी में बाढ़ आने पर इसका असर गंगा नदी पर भी पड़ेगा, इसलिए बिहार को भी अलर्ट रहने की आवश्यकता है। सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि इस मामले पर उन्होंने संज्ञान लिया है और वे सभी अधिकारियों से संपर्क में हैं।
ग्लेशियर या हिमखंड का फटना क्या होता है?
भारत के हिमालयी क्षेत्रों में सालों तक भारी मात्रा में बर्फ जमा होने और उसके एक जगह एकत्र होने से ग्लेशियर का निर्माण होता है। 99 फीसदी ग्लेशियर बर्फ की चादर के रूप में होते हैं, जिसे महाद्वीपीय ग्लेशियर भी कहा जाता है। उत्तरी ध्रुव के अलावा दुनिया भर के बहुत ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ की ऐसी चादरें हमेशा बिछी रहती है।
हिमालयी क्षेत्रों में भी ऐसे ही ग्लेशियर पाए जाते हैं, जिनसे भारत की कई नदियां निकलती हैं। किसी भू-गर्भीय हलचल या टेक्टॉनिक प्लेटों के खिसकने के कारण कई बार यह विशाल गलेशियर अचानक टूटता है। कभी कभार ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी ग्लेशियर के बर्फ पिघल कर बड़े-बड़े बर्फ के टुकड़ों के रूप में टूटने लगते हैं। इस घटना को ही ग्लेशियर या हिमखंड का फटना या टूटना कहते हैं।