हाइड्रोपोनिक विधि : अब बिना मिट्टी के होगा फल व सब्जी का उत्पादन
कृषि विश्वविद्यालय सबौर में हाइड्रोपोनिक तकनीक से उगाई जाएगी फसल
राज्य के सभी विश्वविद्यालय चलाएंगे कार्यक्रम, दूर होगी पशुचारे की समस्या
भागलपुर (voice4bihar news)। राज्य के कई जिलों में पशुचारे की किल्लत दूर करने के मकसद से बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर ने अब हाइड्रोपोनिक विधि से हरा चारा उत्पादन के लिए प्लांट लगाने की पहल शुरू कर दी है। इसके माध्यम से कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े अन्य जिलों के महाविद्यालय के संबंधित किसान या उद्यमी प्रशिक्षण लेंगे। यह कार्यक्रम राज्य के सभी कृषि विश्वविद्यालय चलाएंगे। इस पद्धति से खासकर उन पशुपालकों को काफी लाभ होगा, जिनके पास अपनी जमीन नहीं है और हरे चारे के लिए उन्हें काफी दूर जाना पड़ता है।
क्या है हाइड्रापोनिक तकनीक से खेती?
दुनिया की बढ़ती जनसंख्या और कंक्रीट के जंगल के रुप में विकसित हो रहे महानगरों के कारण दुनिया भर में खेती करने योग्य भूमि घटती जा रही है। जमीन की कमी के कारण आने वाले समय में खाद्यान्न उत्पादन के साथ साथ मवेशी के लिए हरा चारा मिलना भी मुश्किल हो जाएगा। इसी को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी पद्धति की खोज की है, जिसके माध्यम से बिना मिट्टी के फल, सब्जी और हरे चारे का उत्पादन किया जा रहा है। इस विधि को हाइड्रोपोनिक कहते हैं।
इस विधि में मिट्टी का नहीं होता इस्तेमाल
हाइड्रोपोनिक्स का मतलब जलीय पौधे होता है। यानी इस खेती में फसल पानी में उगाई जाती है और इसमें मिट्टी का इस्तेमाल नहीं होता है। खेती की आधुनिक तकनीक में फसल में पोषक तत्व पानी के घोल के जरिए बढ़ाया जाता है। इस विधि से हरा चारा उत्पादन के लिए भागलपुर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर में प्लांट लगाए जाएंगे।
पशुपालकों को सिर्फ बीज व पोषक तत्व का उठाना होगा खर्च
उल्लेखनीय है कि बिहार में 2 लाख 72 हजार से भी अधिक पशुपालक हैं। कुल कृषि क्षेत्र के 0.21 फीसदी में ही हरे चारे का उत्पादन होता है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में 2 मीटर ऊंचे एक टावर में लगभग 35 से 40 पौधे उगाए जा सकते हैं। इसमें 1 लाख रुपये में लगभग 400 पौधे वाले टावर खरीदे जा सकते हैं। अगर इस सिस्टम को अच्छे से इस्तेमाल किया जाए तो इसमें सिर्फ बीज और पोषक तत्व का ही खर्च पशुपालकों को उठाना पड़ेगा।
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हाइड्रोपोनिक खेती को मौसम की मार से बचाना जरूरी
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से लगे पौधे को मौसम की मार से भी बचाना जरूरी होता है। इसके लिए नेट शेड या पॉली हाउस की आवश्यकता भी होती है। इस तकनीक से कंट्रोल्ड एनवायरमेंट में खेती कर सकते हैं। इसके लिए अधिकतर किसान ऐसी सब्जियां उगाते हैं, जिनकी कीमत बाजार में अधिक है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक को सही से उपयोग किया जाए, तो इससे अच्छा मुनाफा भी हो सकता है। इस तकनीक से महंगे फल और सब्जियों के साथ – साथ हरा चारा भी उगाकर बाजार में बेचा जा सकता है।
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक डॉ . संजीव कुमार ने बताया कि हाइड्रोपोनिक तकनीक से बिना मिट्टी के मवेशियों के खाने के लिए हरे चारे के अलावा सब्जी और फल भी उगाए जा सकते हैं। इस विधि से फसल उगाने के लिए बीएयू कृत्रिम तापमान वाला शेड बनाया जाएगा और उस शेड में प्लास्टिक की ट्रे में करीब एक किलो अंकुरित बीज डालने पर एक सप्ताह में 7 से 8 किलो हरा चारा तैयार हो जाएगा। इसके लिए बहुत जल्द ही मॉडल तैयार हो जाएगा।
डॉ.संजीव कुमार ने कहा कि यदि कोई किसान बड़े स्तर पर उत्पादन करना चाहता है, तो प्रतिदिन हजार किलो तक का चारा भी उगा सकता है। इसके लिए जरूरत के हिसाब से जगह चाहिए। 90 प्रतिशत तक इस विधि में पानी भी बचता है। घोल तैयार कर पौधे पर स्प्रे कर दिया जाता है। इससे पौधे को जरूरत के सभी तत्व मिल जाते हैं। चारा उत्पादन की विधि विकसित हो जाने से गरीब किसानों को खासकर सहूलियत होगी।
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अगले दो-तीन महीने में लग जाएंगे हाइड्रोपोनिक पौधे : कुलपति
बीएयू के कुलपति डॉ आर के सोहाने ने कहा कि आगामी दो – तीन महीने में भागलपुर कृपि विश्वविद्यालय के कृपि विज्ञान केंद्र सहित अन्य कृषि विश्वविद्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र में इस तकनीक को लेकर प्लांट लगाए जा रहे हैं। प्लांट में हाइड्रोपोनिक्स विधि से हरे चारे के अलावा फल सब्जी उगाने के बारे में किसानों को बताया जाएगा। अधिकतर पशुपालक के पास जमीन नहीं होने के कारण हरा चारा खरीदकर मवेशी को खिलाते है।
उल्लेखनीय है कि भारत के कई हिस्से ऐसे हैं, जहां पानी की कमी रहती है और कई शहर ऐसे हैं, जहां लगातार भूगर्भ जल स्तर नीचे घटता चला जा रहा है। लेकिन इस तकनीक से सामान्य तकनीक की अपेक्षा सिर्फ 10 फीसद पानी की जरूरत पड़ती है। साथ ही इस विधि में मिट्टी की भी कोई जरूरत नहीं है। इसलिए इस विधि का उपयोग धीरे – धीरे पशु पालक और बड़े बड़े उद्यमियों द्वारा किया जाने लगा है।