शिद्दत से याद की गयीं देश की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले
मौर्य शक्ति संगठन ने महिला सशक्तीकरण की मिसाल के रुप में मनाई पुण्यतिथि
महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान को किया गया याद
सासाराम (voice4bihar desk)। भारत में पहली महिला शिक्षिका बन महिला सशक्तीकरण की मिसाल कायम करने वाली सावित्री बाई फुले की पुण्यतिथि उन्हें शिद्दत से याद किया गया। मौर्य शक्ति कार्यालय भारतीगंज (करपुरवा) सासाराम में आयोजित परिनिर्वाण दिवस समारोह में माता सावित्री बाई फुले के तैल चित्र पर माल्यार्पण कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गयी। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि माता सावित्री बाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले सावित्री बाई फुले ने महिलाओं को पुरुषों के ही सामान अधिकार दिलाने की बात की थी।
3 जनवरी 1831 को हुआ था सावित्री बाई फुले का जन्म
इस अवसर पर मौर्य शक्ति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि मौर्य ने बताया कि सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र स्थित सतारा के नायगांव में हुआ था। सावित्री बाई फुले को देश के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रधानाचार्या बनने और पहले किसान स्कूल की स्थापना करने का श्रेय जाता है। श्री मौर्य ने कहा कि सावित्री बाई ने न सिर्फ महिला अधिकार पर काम किया बल्कि उन्होंने कन्या शिशु हत्या को रोकने के लिए प्रभावी पहल भी की। उन्होंने न सिर्फ अभियान चलाया बल्कि नवजात कन्या शिशु के लिए आश्रम तक खोले, जिससे उनकी रक्षा की जा सके।
वर्ष 1854 में खोला था लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल
सावित्री बाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा राव फुले से हो गई थी। उनके पति महात्मा ज्योतिबा फुले समाजसेवी और लेखक थे। ज्योतिबा फुले ने स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज में उन्हें पहचान दिलाने के लिए उन्होंने 1854 में एक स्कूल खोला। यह देश का पहला ऐसा स्कूल था जिसे लड़कियों के लिए खोला गया था। लड़कियों को उन्होंने कुछ दिन स्वयं पढ़ाया।
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फिर अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को इस योग्य बना दिया कि सावित्री बाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल बनीं। कुछ लोग आरंभ से ही उनके काम में बाधा बन गए। लेकिन ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का हौसला डगमगाया नहीं और उन्होंने लड़कियों के तीन-तीन स्कूल खोल दिए।

एक थैले में साड़ी लेकर चलती थीं सावित्री बाई फुले
एक सवाल और उठता है कि सावित्रीबाई क्यों एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं। जब सावित्री बाई फुले कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, ईंट, पत्थर तक फेंका करते थे। सावित्री बाई फुले एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं।
प्लेग के मरीजों की सेवा करते-करते सावित्री बाई का हुआ इंतकाल
फुले दंपति ने जिस यशवंतराव को गोद लिया था। वे एक ब्राह्मण विधवा के बेटे थे। उन्होंने अपने बेटे यशवंत राव फुले के साथ मिलकर अस्पताल भी खोला था। इसी अस्पताल में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण उनको भी यह बीमारी हो गई। जिसके कारण उनकी 10 मार्च 1897 को उनका परिनिर्वाण हो गया।
माता सावित्री बाई फुले के परिनिर्वाण दिवस पर माल्यार्पण कार्यक्रम के अध्यक्षता मौर्य शक्ति के कार्यालय सचिव राजराम सिंह कुशवाहा ने की और माता सावित्री बाई फुले के बताए रास्ते पर चलने का आह्वान किया। माल्यार्पण कार्यक्रम में सत्यनारायण स्वामी, डा संतोष कुशवाहा, डा कामेश्वर सिंह, डा अवधेश कुमार, संतोष कुमार सिंह, सुदर्शन सिंह, रवि कुशवाहा, बृजबिहारी सिंह कुशवाहा, शिव प्रसन्न सिंह, रजत कुमार, नंदु सिंह कुशवाहा, सिटु कुशवाहा आदि मौजूद थे।