नक्सलियों से मुठभेड़ में 22 जवान शहीद
बीजापुर के जंगलों में मुठभेड़ के दौरान जवानों पर तीन तरफ से किया हमला
रायपुर (voice4bihar desk)। बीजापुर के जंगलों में नक्सलियों से मुठभेड़ में शहीद जवानों की संख्या बढ़कर 22 हो गयी है। शनिवार को हुए मुठभेड़ के बाद लापता 21 जवानों में से 14 के शव घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर बरामद कर लिये गये हैं। मुठभेड़ के बाद से सात और जवान लापता हैं जिनकी तलाश में सुरक्षा बल जंगल में व्यापक पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं। इस मुठभेड में कुल 43 जवान घायल भी हुए हैं जिनमें 13 की हालत चिंताजनक बनी हुई है। गंभीर रूप से घायल जवानों को बेहतर इलाज मुहैया कराने के लिए बीजापुर के जंगलों से एयरलिफ्ट कर रायपुर लाया गया है।
25 लाख के इनामी हिडमा की तलाश में गये थे सुरक्षाकर्मी
मुठभेड़ शनिवार को सुकमा जिले के चिंतागुफा थाना क्षेत्र के मिनपा-कसलपाड़ के जंगल में हुई थी। सुरक्षा बल ऑपरेशन प्रहार-2 के क्रम में जंगल में नक्सलियों के छिपे होने की सूचना पर गये थे। इसी दौरान नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया। इस हमले में शहीद होने वालों में डीआरजी, एसटीएफ और कोबरा के जवान शामिल हैं। सूत्र बताते हैं कि सुरक्षाकर्मी छत्तीसगढ़ के 25 लाख रुपये के इनामी नक्सली कमांडर हिडमा की तलाश में गये थे। पूरी साजिश भी हिडमा ने ही रची जिसमें फंस कर कम से कम 22 जवानों को शहादत देनी पड़ी।
गुरिल्ला आर्मी पीपुल्स लिबरेशन ग्रुप का कमांडर है हिडमा
इतनी बड़ी घटना के लिए जिस नक्सली कमांडर को जिम्मेदार माना जा रहा है उसका पूरा नाम माड़वी हिडमा है। हिडमा को संतोष उर्फ इंदमुल उर्फ पोडियाम भीमा जैसे नामों से भी जाना जाता है। नाटा और दुबला-पतला कद काठी के हिडमा ने नक्सली संगठनों में अपना बहुत बड़ा कद बना लिया है। इसके कारण छत्तीसगढ़ सरकार को उस पर 25 लाख रुपये का इनाम घोषित करना पड़ा। गुरिल्ला आर्मी पीपुल्स लिबरेशन ग्रुप का कमांडर हिडमा वर्ष 2017 में सबसे कम उम्र में माओवादियों की शीर्ष सेन्ट्रल कमेटी का मेम्बर बन चुका है। माओवादियों के इस आदिवासी चेहरे को छोड़कर नक्सलगढ़ दंकारण्य में बाकी कमांडर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र या दूसरे राज्यों से हैं।
यहां जनता के नाम पर चलती है नक्सलियों की सरकार
विज्ञापन
सुकमा जिले के जगरगुण्डा जैसे दुर्गम जंगलों वाले इलाके में हिडमा की सरकार चलती है। हिड़मा का गांव पुवर्ती जगरगुण्डा से 22 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है, जहां पहुंचना आसान नहीं है। इस इलाके में स्कूल तो है पर एक दशक से अधिक समय से यह कभी खुले नहीं। आसपास के स्कूलों में बच्चे पढ़ने नहीं आते हैं। हिडमा यहां के बच्चों को बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देता है। स्कूलों में नक्सलियों का जमावड़ा रहता है। यहां जनता सरकार के नाम पर नक्सलियों की सरकार चलती है। नक्सलियों ने यहां अपने तालाब बनवाये हैं जिनमें मछली पालन होता है। गांवों में सामूहिक खेती होती है। हिडमा खुद ज्यादा पढ़़ा-लिखा नहीं लेकिन फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है। हिड़मा की पहचान है कि उसके बाएं हाथ में चार ही अंगुली है।
तीन दशकों से नक्सली संगठनों से जुड़ा है हिडमा
हिडमा करीब तीन दशकों से नक्सली संगठनों से जुड़ा हुआ है। वर्ष 1990 में मामूली लड़ाके के रुप में वह माओवादियों से जुड़ा था। सटीक रणनीति बनाने में माहिर हिडमा बहुत जल्द एरिया कमांडर बन गया। 2010 से अब तक उसने कई क्रूरतम वारदातों को अंजाम दिया है। वर्ष 2010 में ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवानों को उसने अपने साथियों के साथ मिलकर मार डाला था। तीन साल बाद 2013 में जीरम घाटी में उसने कांग्रेस के काफिले पर हमला कर 31 लोगों की जान ले ली थी। इस हमले में मरने वालों में कांग्रेस के विद्या चरण शुक्ल और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल जैसे बड़े नेता भी शामिल थे। वर्ष 2017 में बुरकापाल में हमला कर उसने सीआरपीएफ के 25 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। खुद ए के -47 रायफल लेकर चलने वाला हिडमा चार चक्रों की सुरक्षा से घिरा रहता है।
अपने जाल में फंसाकर नक्सली करते हैं हमला
प्रहार-2 के तहत नक्सलियों के टीसीओसी (टेक्टिकल काउन्टर ऑफेन्सिव कैम्पन) को ध्वस्त करने के इरादे से सुरक्षाकर्मी रोज जंगलों में ऑपरेशन चला रहे थे। इस बीच, खुफिया जानकारी मिली थी कि हिडमा भी यहीं छुपा हुआ है। इसी सूचना के बाद करीब दो हजार सुरक्षाकर्मी मिनपा के जंगलों में घुसे थे। ऐसे मौकों पर नक्सली सुरक्षाकर्मियों की छोटी टुकड़ी को फंसाकर उन्हें उनके झु्ंड से अलग करते हैं और मौका मिलने पर उन पर तीन या कभी-कभी चारो तरफ से हमले करते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। दो जगहों पर मुठभेड़ को अंजाम देने के बाद सुरक्षाकर्मी लौट रहे थे तभी रेंगापारा में डेढ़ किलोमीटर लम्बे नक्सलियों के एम्बुश में सुरक्षाकर्मियों की एक टुकड़ी फंस गयी।
उस टुकड़ी में 60 से 70 जवान थे। एंबुश में फंसे सुरक्षाकर्मियों पर नक्सलियों ने तीन तरफ से हमला कर दिया। उस वक्त सीआरपीएफ की कोबरा की टीम बचाव के लिए पहुंचने वाली थी, पर नक्सलियों की गोलीबारी के कारण कोबरा पहाड़ से नीचे नहीं उतर पायी, जहां जवान फंसे हुए थे। अगर ये जवान उतर जाते तो नुकसान और बड़ा हो सकता था। क्योंकि जवान पहाड़ के नीचे थे और नक्सली ऊपर पहाड़ पर से उन्हें निशाना बना रहे थे। शनिवार को दोपहर करीब 12 बजे शुरू हुई मुठभेड़ शाम चार बजे तक चली। रविवार को भी इलाके में छिपे नक्सलियों और लापता जवानों की तलाश में सुरक्षाकर्मी जुटे रहे। इस मुठभेड़ में पुलिस नौ नक्सलियों के मारे जाने का दावा कर रही है पर शव सिर्फ एक महिला का मौके से मिला है।